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Saturday, June 27, 2020

सैम मानेकशॉ; Sam Manekshaw

सैम मानेकशॉ


इनका पूरा नाम  सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ था। गोरखों की कमान संभालने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी थे। गोरखों ने ही उन्हें सैम बहादुर के नाम  से पुकारना शुरू किया। मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। 94 साल की उम्र में इनका निधन 27 जून 2008 को  हुआ।  27 जून को इनकी पुण्यतिथि है। 
1971 की भारत -पाकिस्तान युद्ध के नायक जनरल मानेकशॉ अपनी सूझ -बूझ ,निर्भीकता ,और जीवटता के लिए मशहूर थे। मानेकशॉ को 1971 की लड़ाई के बाद फील्ड मार्शल की उपाधि दी गयी थी। 
मानेकशॉ अपने सख्त अनुशासन के साथ -साथ , हाजिर जवाबी के लिए तथा हँसी - मजाक करने की प्रवृति के लिए भी मशहूर थे। शुरुआती पढाई अमृतसर में करने के बाद शेरवुड कॉलेज से अपनी पढाई पूरी की।  मानेकशॉ INDIAN MILITARY ACADEMY के पहले बैच के अधिकारी थे।1937 में एक समारोह के लिए लाहौर गए सैम की मुलाकात सिल्लो बोडे से हुई। दो साल के बाद 22 अप्रैल 1939 को उन्होंने  सिल्लो बोडे से शादी कर ली। उनकी मृत्यु वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल में 27 जून 2008 को हुई। 

अपनी बहादुरी के लिए थे प्रसिद्द 

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बर्मा के पोस्ट पर वे फ्रंटियर फाॅर्स रेजिमेंट के कप्तान के पद पर तैनात थे। यहीं जापानी सेना से लड़ते हुए उन्हें सात गोलियां लगी थीं। और वे गंभीर रूप से घायल थे। डॉक्टर्स ने भीउनकी गंभीर स्थिति को देखते हुए  इनका इलाज़ करने से मना कर दिया था। तब इनके एक गोरखा सैनिक ने डॉक्टर पर बन्दूक तान कर मानेकशॉ का इलाज करवाया। तब कुछ दिनों के बाद आखिरकार मानेकशॉ स्वस्थ हुए। इलाज के दौरान डॉक्टर के पूछने पर उन्होंने हँसते हुए कहा ये सब कुछ नहीं है ,बस आप इलाज कीजिये। जबकि उन्हें सात गोलियां लगी थीं ,फिर भी उनमे कसीस तरह का भय नहीं था। उनका एक ही मंत्र था -" जब तक जान है ,तब तक लड़ो "  

हाजिर जवाब में थे माहिर  

1971 के भारत -पाकिस्तान युद्ध के दौरान जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उनसे सेना की तैयारियों के बारे पूछा की -क्या सेना की सारी तयारी हो चुकी है ? तो मानेकशॉ ने बड़े ही चुटीले अंदाज में उन्हें तुरंत जवाब दिया -" I am always ready sweety "
प्रधानमंत्री को भी ऐसे चुटीले अंदाज में जवाब देना ,उन्हें औरों से बिलकुल अलग करती थी। जो यह दर्शाता था की युद्ध जैसे विपरीत हालात में भी वो कितने सामान्य दिख रहे थे ,जो उनके हौसलों की एक अलग ही कहानी बयां कर रही थी। 
लेकिन 1971 के युद्ध के बाद जब यह अफवाह फैली की मानेकशॉ तख्तापलट करने वाले हैं तो ,इंदिरा गाँधी के माथे पर बल पड़  गए। तब उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इंदिरा गांधी से मुलाकात की और कहा -"मैडम... ?आपकी नाक बहुत लम्बी है ,और मेरी भी नाक बहुत लम्बी है ,लेकिन मैं कभी भी किसी दूसरे के मामले में अपनी नाक नहीं घुसाता "
स्पष्ट था की मानेकशॉ ये कहना चाहते थे की उनकी और प्रधानमंत्री दोनों  की अपनी एक प्रतिष्ठा थी ,जिसे वो कायम रखना चाहते थे। और भारत सरकार  का तख्तापलट करने का उनका या उनकी सेना का कोई इरादा नहीं है ,तख्तापलट की बात एक कोरी अफवाह के सिवा  कुछ नहीं है। 

कई युद्धों में ले चुके थे हिस्सा 

मानेकशॉ 1934 से 2008 तक वीर भारतीय सेना के अंग से जुड़े रहे। उन्होंने भारत द्वारा लड़े  गए लगभग सभी युद्धों में अपनी वीरता का परचम लहराया। 
द्वितीय विश्व युद्ध जो 1939 -1945 के बीच लड़ी गयी ,वो बर्मा के मोर्चे पर तैनात थे 
1947 के भारत -पाकिस्तान युद्ध में भी इनकी विशेष भूमिका रही 
1962 में भारत -चीन युद्ध में भी इन्होने हिस्सा लिया 
1971 में भारत -पाकिस्तान के युद्ध में इनकी प्रसिद्धि और बढ़ गयी थी ,जहाँ इनके दिशा निर्देशन में पाकिस्तान की फ़ौज को घुटने टेकने पर विवश होना पड़ा। 
1962 से सारी लड़ाईयां इनके ही नेतृत्व में लड़ी गयी और इन्होने हर युद्ध में अपने देश का सर हमेशा ऊँचा रखा। 

मानेकशॉ को मिलने वाले वीरता सम्मान 

  • फील्ड मार्शल की उपाधि 1973 
  • पद्मभूषण  1968 
  • पद्मविभूषण 1972 
  • सैन्य क्रॉस 

मानेकशॉ को था अपने पर बहुत विश्वास 

1971 के युद्ध के बाद उनसे जब ये पूछा गया की -"अगर आप बँटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए होते तो क्या होता ?"
तो उन्होंने मजाक में हँसते हुए जवाब दिया -"होता क्या... ?तब सारी लड़ाइयों में मै पाकिस्तान की तरफ से लड़ता और उसे हरने नहीं देता।"लेकिन मेरा सौभाग्य है मै भारत में हूँ। 1947 में भी इन्होने अपनी सूझ-बूझ से काश्मीर पर भारत सेना का नियंत्रण पाने में ,तथा स्थितियों को सँभालने में मदद की थी।  7 जून 1969 को सैम मानेकशॉ ने भारत के 8वें चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ का पद ग्रहण किया था। 15 जनवरी 1973 को वे फील्ड मार्शल के पद से सेवानिवृत्त हुए।

चूड़ियाँ पहन लो 

1962 में जब चीन के साथ लड़ते हुए मिजोरम की एक बटालियन ने युद्ध से दुरी बनाये रखने का मन बनाया तो मानेकशॉ ने उस बटालियन को चूड़ियां भिजवा दी थी ,और साथ इ सन्देश भिजवाया की - अगर लड़ाई से पीछे हटना है तो चूड़ियां पहन कर घर को चल दो। उनके इस बात का उस बटालियन पर काफी असर पड़ा और उन्होंने युद्ध में बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लिया और अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया था ,हालांकि उस युद्ध में भारत के पराजय का दुःख मानेकशॉ को ताउम्र रहा। 

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