कोरोना व्यंग्य (corona satire)
धत्त तेरे की ..........
अचानक से उनके मुंह ने अपना दरवाज़ा खोला था। बड़ी देर से वो समाचार पढ़ रहे थे। और मंद -मंद मुस्कुराये जा रहे थे । चाय की चुस्कियों के साथ ही उनकी माथे की त्योरियाँ भी चढ़ गई थी।
मैंने पूछा - क्या हो गया भैया ?
वे बोले - ई कोरोना !लगता है जीने ही नहीं देगा, पूरा दुनिया ख़तम कर देगा, तभी मानेगा लगता है।
अरे हुआ क्या ये तो बताओ?
उन्होंने कहा - एक तो अभी तक ई कोरोना का कोई इलाज़ नहीं मिला है ऊपर से रोज़ रोज़ नया -नया खबरे छपता रहता है।
क्यों। ....क्या छप गया ?
बताओ तो जरा कोरोना न हो गया मुसीबत हो गया। ऐसा मुसीबत तो अब तक हम देखवे नहीं किये है। कभी ऐसा हुआ ,कभी वैसा हुआ ये ही सब ड्रामा चल रहा है। काम -धंधा अलगे चौपट चल रहा है। किसी को चैन से जीने नहीं दे रहा है। न दुकाने खुलता है न अस्पताल कुछो नहीं।
मुझे अभी तक उन्होंने नहीं बताया की क्या छप गया ऐसा। बस अपने में ही बात किये जा रहे थे साहब। रोज़ इसी तरह अख़बार पढ़कर प्रतिक्रिया देते रहते हैं। लेकिन आज तो कुछ ज्यादा ही हो गया। चेहरा लाल किये बैठे थे। मोबाइल भी उनके पास बटन वाला था ,सो सारी जानकारी उन्हें अखबार से ही मिलती थी। बहुत जोर देकर पूछा मैंने ,अब तो बताओ की क्या छप गया ऐसा ?
बताओ तो जरा अब लिख दिया है ये पेपर वाला की कोरोना आँख से भी फैलेगा।
मैंने बोला - फैलेगा नहीं फ़ैल सकता है।
अरे हाँ तो वही..... फ़ैल सकता है। बताओ जरा अभी तक मास्क और सैनेटाइजर लेके घूम रहे थे। अब का आँख का पट्टी भी लगाकर घूमेंगे ? फिर कुछो देखेंगे कैसे भाय !
अरे ऐसा नहीं है ....... मैंने कुछ बोलना चाहा।
लेकिन वे फिर बोल पड़े
बिना मास्क और सैनेटाइजर के तो तुम भी मुझे अपने यहाँ नहीं आने देते। अब तो बिना आँख -पट्टी के भी नहीं आने दोगे । पेपर कैसे पढ़ेंगे? क्या खबर है ,नहीं है कैसे जानेंगे भला?
मैंने कहा- ज्यादा नजदीक किसी के नहीं जाइएगा बस।
ये सुनकर फिर वो बोलने लगे ई अखबार वाला कभी छापेगा दो फुट दूर रहो ,फिर बोलेगा छः फुट दूर रहो कभी बोल देगा हमेशा के लिए दूर हो जाओ। पागल कहीं का।
मैंने कहा-अरे ऐसा नहीं है। रोज़ कोरोना के बारे में कई वैज्ञानिक लोग को कुछ न कुछ पता करते है और उसी आधार पर छाप देते है।
ओ. . . . . . . तब मतलब की वैज्ञानिक लोग को भी अच्छा से कुछो नहीं पता है बताओ जबकि सब इतना पढ़ा लिखा होता है ,रोज़ नया-नया खोज करता है।
क्या करेंगे वैज्ञानिक बेचारे भी , ये वायरस अपना रूप बदल रहा है।
अच्छा ! रूप भी बदलता है ? फिल्म का हीरो हीरोइन की तरह हो गया है।
हाँ , अलग- अलग देशों में अलग - अलग लक्षण वाला वायरस मिल रहा है।
उन्होंने कहा - हम्म ! नहीं ई सब उ नाटा देश के कारण हो रहा है। हर बार नाटा देश से ही कोई न कोई कीड़ा निकलता है ,और बीमारी फैलता है।
उनका इशारा चीन की तरफ था। पढ़े लिखे थे थोड़ा बहुत बस अब उनका General knowledge कुलांचे मारने लगा। थोड़ी देर शांत रहने के बाद वे फिर बोले !
बताओ तो ई छोटा नाक वाला देश प्लेग फैलाया ,H-1, H-2 और क्या क्या पता नहीं ये सब फैलाया है। कितना लाख लोग मर गया। हत्यारा है ये देश।
मैंने कहा- अकेले उसका दोष नहीं है।
वे बोले -अरे नहीं सब उसी का दोष है। क्या-क्या खाते रहता है ,नहीं जानते हो क्या तुम ? अरे अच्छा चीज़ खाना चाहिए न , चावल खाओ , दाल खाओ, खूब बढियाँ -बढियाँ हरा सब्ज़ी खाओ , तो नहीं .......खायेगा क्या खाली जानवर और बीमारी फैलाते रहेगा। बताओ ज़रा इतना दिन से दुकानदारी बंद है देगा का ई चाइना - टाइना वाला आके हमको।
मैं एकटक उनकी बातें सुने जा रहा था। कुछ बोल नहीं नहीं पा रहा था। सच कहूँ तो उन्होंने बोलने का मौका ही नहीं दिया। फिर भी मैंने कहा.. ......... चलिए अब किसी को कोसने से कोई फायदा तो है नहीं ,बस अपने को safe रखिये।
फिर वे बोल पड़े. .........(आज लगता है साड़ी भड़ास निकालने के मूड में थे ) थोड़ा उग्रता के साथ मुझसे पूछ बैठे।
अब बताओ किसी चीज़ को न छुएं , हमेशा सैनेटाइजर और हाथ वगैरह धोते रहे आँय!
और बाकी बदन का क्या? क्या पैर से कोई चीज़ नहीं छुआता है? क्या बदन से नहीं छुआता है क्या? क्या -क्या नहीं छुएं बताओ , अरे अपना मुंह भी नहीं छू सकते बताओ तो, अगर कोई मच्छर बैठ गया मुंह पर तो क्या करेंगे ?उसको बोलेंगे क्या..... की ऐ भैया मत काटो मुझे.... की उसको मारवे करेंगे और मारने के लिए तो उसको छूना पड़ेगा। सोशल -डिस्टैन्सिंग का क्या फ़ायदा ,किराना वाला से सामान लो तो पता नहीं किराना वाला कितना को छू -छू कर सामान देता है।
मैंने कहा- वे लोग ग्लव्स पहन के देते है न सामान।
कहाँ तो ग्लव्स पहनता है सब। चलो तो जरा दिखाते है तुमको कौन कौन पहना है ग्लव्स और दस्ताना।
फिर मैंने कहा -पहनते हैं कुछ लोग तो पूरा चेहरा ही ढांक कर सामान बेच रहे है।
मेरी तरफ गुस्से से देखते हुए उन्होंने कहा - फिर वही बात !चलो न जी अभी सब पता चल जायेगा, चलो तुम अभी। हाथ कंगन को आरसी क्या ,पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या ?चलो मिल जायेगा सबूत अभी के अभी।
अच्छा रहने दीजिये ! मान ली मैंने आपकी बात। मैंने ये कहकर उनकी उग्रता को शांत करने की एक विफल कोशिश की। अचानक ही उनका फोन बज गया।
हाँ हेलो ! हाँ आते है रुको दस मिनट। फिर कुछ देर बात करने के बाद फ़ोन काट देते हैं।
शायद उनके घर से उनकी धर्मपत्नी का फ़ोन था। मैंने सोचा चलो अब ये जाएंगे शायद लेकिन नहीं आज तो वो पूरा ज्ञान मुझे देने के ही मूड़ में थे। पैर के ऊपर पैर चढ़ा कर जरा आराम की मुद्रा में आते हुए वे फिर बोल बैठे -अब देखो !फोन पर बात करके हम फोन तुम्हारे टेबल पर रख दिए।, तो मेरा फोन से तुम्हारा टेबल सब छुआ गया न। अब तुम उसको छुओगे की नहीं ,फिर कोई दूसरा भी छुएगा। अब बोलो ! बताओ है कोई उपाय?
मैंने कहा - मिल जायेगा उपाय। कोई वैक्सीन या कोई दवा बन जायेगा कभी न कभी।
वे बोले - अरे जब बनेगा तब बनेगा। तब तक तो ई चाइना वाला के चक्कर में हियाँ भी केतना के वारा -न्यारा हो न जायेगा। सब अभी न घर में बैठा है बाद में जब निकलेगा तब का होगा। और चलो मान भी लेते है के दवा या उ वैक्सीन बन भी जाता है तो क्या होगा , है तो ई छुआ -छूत वाला ही बीमारी न जी।
इसका तो लक्षण ही कितना दिन बाद दिखाई देता है। सुने हैं की 4 से 14 दिन में लक्षण दिखाई देता है इसमें।
मैंने कहा -हाँ ठीक सुने हैं आप।
वो बोले -तब ! बताओ तो जरा.... जब तक लक्षण पता चलेगा , तब तक तो कोई भी कितना लोग को और कितना चीज को छू देगा , कितना लोग में ये बीमारी फ़ैल जायेगा फिर ,सोचे हैं कभी।
मैंने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाया
फिर वो बोले - फिर ऊ सब भी कितना को छू देगा , हजारों से ज्यादा हो जायेगा। फिर ऊ हजारो ,लाखों लोग को छू देगा।
मैंने कहा - तब तो आप किसी चीज को छूते ही नहीं होंगे फिर तो !
वे बोले - कैसे नहीं छुएंगे , बिना छुए कोई काम होता है थोड़े ना !अब बताओ जरा , कैसे कंट्रोल होगा ये कोरोना ?कौन रोकेगा इसको ?
उनके गजब के ज्ञान से मै अचम्भित था। उनकी हर बात में व्यग्रता के साथ उग्रता भी दिख रही थी। उन्होंने विस्तार से बिलकुल व्यंगात्मक रूप से ऐसी व्याख्या की थी की अगर सामने कोरोना होता तो बेचारा पानी पानी हो जाता।
मैंने हिम्मत करके आखिरकार पूछा।
तो कैसे कण्ट्रोल होगा ये कोरोना आपके हिसाब से... ?
वे बोले - नहीं होगा। कोई कुछ कर ले , बिलकुल नहीं होगा , होना होता तो अब तक हो चूका होता।
मैंने पूछा -क्यों नहीं होगा, कितना बीमारी ख़त्म हो गया , ये भी ख़त्म हो जायेगा ,समय भले ही लग रहा है थोड़ा।
अब तो वो मुझ पर बरस पड़े -आप लोग पढ़े लिखे होके भी ऐसी बात करते हैं , बताइये तो , कौन बीमारी पूरा पूरा ख़त्म हो गया है बताइये तो जरा हमको ,एड्स खतम कर पाए आपलोग ?, सर्दी -खांसी ख़तम हुआ ? इबोला भी नहीं ख़तम हुआ ,और तो और चेचक भी पूरा ख़तम नहीं ही हुआ। बात करते हैं आप....... सिर्फ कण्ट्रोल ही न होता है दवा वगैरह से... ख़त्म कहाँ हुआ.....
मुझे भी उनकी हाँ में हाँ मिलाना पड़ा.... कह भी तो वो सही रहे थे। इतने अथक प्रयास के बाद भी ये सब बीमारी तो ख़त्म नहीं ही हुई है।
वो बोले - देखे !पड़ गए न आप भी सोच में ,
मैंने हाँ में सिर हिलाया तो उन्हें भी अपने ज्ञान पर तसल्ली हुई।
मेरी तरफ देख कर वो फिर बोले -लेकिन आपके हाव -भाव से हमको कुछ और ही पता चल रहा है।
मैंने सकपका कर पूछा - क्या पता चल रहा है ?
वो बोले - यही की आप मेरी बात को हल्के में ले रहे हैं , मन ही मन आप मेरी बात का मजाक उड़ा रहे हैं। जबकि हम सब बात सोलह आने सच बोल रहे हैं।
मैंने कहा - ऐसी बात नहीं है , आप बिलकुल सही बोल रहे हैं। मै भी ये सब चीज समझ रहा हूँ।
वो मेरी बात को बीच में ही काटते हुए बोले - समझ रहे हो न ! तो बस ऐसे ही रहो और मेरी मानो तो अब काम धंधा पर लग जाओ ! कितना दिन रहोगे ऐसे ही बैठे खाली निठाले ?
मैंने कहा -अभी सरकार ने शिक्षण -कार्य अनुमति नहीं दी है न !
वो बोले-अरे छोड़ो सरकार - वरकार को !देखो न अब चुनाव वाला महीना भी आ चला है न अब , देखो सरकार सब चीज धीरे -धीरे खोल दिया न। पब्लिक जायेगा भाड़ में , ये सब अब वोट मांगते फिरेगा। सरकार को नहीं पता है की कोरोना और फ़ैल जायेगा ? कर दिया अनलॉक -1.....
मैंने कहा - हाँ ये बात भी है.....
तो फिर..... निश्चिंत मुद्रा में उन्होंने कहा , फिर अचानक से बोले -चलिए फिर कल अब बात करते हैं.... घर से फ़ोन आ गया है.... कुछ सामान लाना है.... नहीं लाये तो घर में अलग ही कोरोना फ़ैल जायेगा।देवी जी मेरे सिर पर बैठ जाएँगी।
देवी जी वो अपनी पत्नी को कह रहे थे. मैंने भी हँसते हुए कहा -हाँ ठीक है , मिलिए फिर कल।
वो बोले- हाँ , चलिए ,चलते हैं अब। मिलते हैं फिर कल आपसे।
मैंने कहा - ठीक है। आइये फिर कल। नमस्कार
जाते -जाते गेट को पकड़ कर वे फिर बोल पड़े -लेकिन एक बात जान लीजिये आप , सरकार कुछ नहीं करेगा। जो करना है अब हम लोग को ही करना पड़ेगा। बाकी जिंदगी लेना -देना तो ऊपर वाले के हाथ में है। चलिए ,चलते हैं! नमस्कार !
अंततः वो चल दिए... लेकिन मै भी उनके जाने के बाद कुछ देर तक सोचता रहा , की सही तो वो कह रहे थे , सरकार के इतने कदम उठाने के बावजूद इस बीमारी का अब तक कोई तोड़ नहीं निकल पाया है। मेरे मुँह से बस इतना ही निकला ....
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