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Monday, June 29, 2020

June 29, 2020

Prashant Chandra Mahalnobis; The great statistician प्रशांत चंद्र महालनोबिस : एक महान सांख्यिकीविद

Prashant Chandra Mahalnobis; The great statistician
प्रशांत चंद्र महालनोबिस : एक महान सांख्यिकीविद 


P.C.Mahalnobis एक बहुत ही प्रसिद्द वैज्ञानिक और सांखियकीविद थे , जिन्होंने भारत देश के कई योजनाओ में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनकी याद में 29 जून को भारत में सांख्यिकी दिवस मनाया जाता है। इनके द्वारा बताई गयी Mahalnobis Distance एक statistical measurment है जिसका उपयोग सांख्यिकी के क्षेत्र में होता है। इसके साथ वे फेल्डमैन महालनोबिस मॉडल के लिए भी काफी प्रसिद्द हैं। इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए इन्हे कई सम्मान व पुरस्कार प्रदान किये गए जिनकी संख्या भी इनकी प्रखरता के अनुसार अधिक हैं। 
  •  1944 :  ‘वेलडन मेडल’ पुरस्कार
  •  1945 :  लन्दन की रायल सोसायटी में फेलोशिप 
  •  1950 :  ‘इंडियन साइंस कांग्रेस’ का अध्यक्ष बनाया गया 
  • अमेरिका के ‘एकोनोमेट्रिक सोसाइटी’ फेलोशिप 
  •  1952 :  पाकिस्तान सांख्यिकी संस्थान का फेलोशिप 
  • 1954 :   रॉयल स्टैटिस्टिकल सोसाइटी का मानद फेलो 
  •  1957 :  प्रसाद सर्वाधिकार स्वर्ण पदक 
  •  1959 :  किंग्स कॉलेज का मानद फेलो 
  • 1957 :  अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान का ऑनररी अध्यक्ष
  •  1968  : पद्म विभूषण 
  • 1968  :  श्रीनिवास रामानुजम स्वर्ण पदक
इनका जन्म 29 जून 1893 को कोलकाता में हुआ था। इनके पिता प्रबोध चंद्र महालनोबिस ब्रह्मो समाज के एक सक्रीय सदस्य थे। इनकी माता निरोदबासिनि एक सुशिक्षित महिला थीं। इनका विवाह 27 फरवरी 1923 को निर्मल कुमारी महालनोबिस से हुआ था। 
इनके कई शिक्षक भी विश्वप्रसिद्ध लोगों में गिने जाते हैं। भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस तथा शारदा प्रसन्न दास और प्रफुल्ल चंद्र रॉय जैसे विख्यात लोग इनके शिक्षक रहे थे। इन शिक्षकों के सान्निध्य में ही इनकी प्रतिभा का विकास हुआ। मशहूर वैज्ञानिक मेघनाद साहा और विख्यात स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस इनके जूनियर थे। 
इनके ही अथक प्रयास से भारत में इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टिट्यूट की स्थापना हुई ,जो आज विश्व भर में एक ख्यातिप्राप्त संस्थान है। इस संस्थान में बड़े पैमाने पर सैंपल सर्वे का खाका तैयार किया गया था। इन्होने ही भारत के द्वितीय पंचवर्षीय योजना को तैयार किया था। आज़ादी के बाद इन्हे मंत्रिमंडल में सांख्यिकी सलाहकार बनाया गया था। इन्होने देश से बेरोजगारी के उन्मूलन के लिए तत्कालीन सरकार के लिए कई योजनाएं बनाईं थी। 
इनके पिता के ब्रह्मो समाज के एक सदस्य होने के कारण इनकी भी प्रारंभिक शिक्षा उनके ही दादा द्वारा स्थापित ब्रह्मो बॉयज स्कूल में हुई थी। इनकी माता एक शिक्षित महिला थीं जिसके कारण इनके घर में शिक्षा का वातावरण  बना रहा। 1908 में मेट्रिक पास करनेके बाद ,1912 में इन्होने प्रेसीडेंसी कॉलेज से PHYSICS HONOURS की डिग्री ली।इसके बाद उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से गणित विज्ञान की डिग्री हासिल की।वहीं इनकी मुलाकात विश्वविख्यात गणितज्ञ रामानुजन से हुई थी। इन्होने टी.आर. विल्सन जैसे विख्यात लोगों के साथ भी काम किया। 
भारत लौटने के पश्चात ये प्रेसिडेंसी कॉलेज में भौतिकी के प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए। कुछ दिनों के बाद ये वापस लंदन जाकर बायोमेट्रिका का अध्ययन किया और मानवशास्त्र तथा मौसम विज्ञानं जैसे  विषयों में सांख्यिकी के उपयोग की जानकारी हासिल की। 
फिर इन्होने भारत लौटकर 1931 में इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट(ISI) की स्थापना की। जिसका रजिस्ट्रेशन 28 अप्रैल 1932 को किया गया। अपने अथक प्रयास से इन्होने इसका प्रशिक्षण विभाग भी स्थापित कर दिया। 1950 तक आते -आते ISI एक विश्वप्रसिद्ध संसथान के नामों में गिना जाने लगा। 1959 में इस संस्थान को INSTITUTE OF NATIONAL IMPORTANCE घोसित कर दिया गया। और इसे एक डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया गया। 

Sunday, June 28, 2020

June 28, 2020

पी. वि. नरसिम्हा राव : आधुनिक युग का चाणक्य ; P.V.NARSIMHA RAO

पी. वि. नरसिम्हा राव : आधुनिक युग का चाणक्य 


पामुलापति वेंकट नरसिंह राव भारत के 9 वें प्रधानमंत्री थे।पी वी नरसिंहराव का जन्म 28 जून, 1921 को करीमनगर, आंध्र प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम पी. रंगा राव और माता  का नाम रुक्मिनिअम्मा था ।इनकी पत्नी का नाम सतयम्मा राव था। नरसिंह राव भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक कुशल कार्यकर्ता माने जाते हैं।  

राजनीतिक सफर 

1982 में ज्ञानी जैल सिंह के साथ ही राष्ट्रपति पद के लिए उनके नाम पर भी विचार किया गया था। लेकिन अंत में उनके नाम पर सहमति नहीं बन पायी थी। इनका कार्यकाल 20 जून 1999  से  16 मई 1996 तक रहा।   'लाइसेंस राज' की समाप्ति और भारत की  अर्थनीति में लचीलापन इनके प्रधानमंत्रित्व काल में शुरू हुआ। इनके काल में डॉ. मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे।1968-71में वे आंध्र प्रदेश सरकार में शिक्षा मंत्री रहे। 1971 से 1973 तक ये आन्ध्रा प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। 1984-85 केन्द्रीय रक्षा मंत्री का कार्यभार संभाला और 1985 में केन्द्र सरकार में मानव संसाधन और विकास मंत्री रहे। 
इन्हे भारतीय आर्थिक सुधारों का जनक” (Father of Indian Economic Reforms) भी कहा जाता है। इन्दिरा गाँधी के कार्यकाल के दौरान नरसिम्हा राव जी गृहमंत्री थे। 21 मई 19991 को राजीव गाँधी की हत्या के बाद कांग्रेस को 232 सीटों पर जीत मिली थी। अल्पमत की सरकार बनाने के बावजूद इन्होने अपना कार्यकाल पूरा किया था।इन्हे भारतीय राजनीती में आधुनिक चाणक्य की संज्ञा भी दी जाती है। विपक्षी दल के सुब्रमण्यम स्वामी को ‘श्रमिक मापदंड और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार’ आयोग का अध्यक्ष बनाकर उन्होंने इसका परिचय भी दे दिया था। यह भारत की  राजनीति में पहला अवसर था जब विपक्ष के किसी सदस्य को कैबिनेट स्तर का पद दिया गया था। 
 वह बेहद मुश्किल वक्त था। भारत एक राजनीतिक उथल-पुथल के  दौर से गुजर रहा था।  देश की सीमाओं पर की स्थितियां ठीक नहीं थी । थ्येनआनमन चौक( चीन ) पर घटी घटना ने पुरे विश्व को चकित कर रखा था , इराक ने कुवैत पर हमला बोल दिया था, मॉस्को में करीब 70 वर्ष पुरानी शासन व्यवस्था का अंत हो गया था । बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर देश में अशांति का दौर चल रहा था। काश्मीर की स्थिति भी ठीक नहीं थी। बाबरी मस्जिद गिराए जाने  देश में दंगे भी हुए। इसके साथ साथ इन्होने अपनी ही पार्टी में होने वाली गुटबाजी का दंश भी झेलना पड़ा था। 1993 में हुए मुंबई बम धमाकों ने भी इनकी मुश्किलें काफी बढ़ा दी थी। 
लेकिन स्थितियों से निपटते हुए उन्होंने भारत के विकास का रथ आगे बढ़ाना जारी रखा।क्योंकि इनके लिए देशहित ही सर्वोपरि था। अपनी आलोचनाओं पर ये सामान्यतः कोई प्रतिक्रिया नहीं देते थे। इन्हे सिर्फ अपने कार्य और कार्यपद्धति पर विश्वास था। उस समय हर्षद मेहता ने भी इन पर एक करोड़ के रिश्वत लेने का आरोप लगाया था। सांसदों की खरीद -फरोख्त का भी इल्जाम इन पर लगा ,मगर हर स्थितियों में इन्होने कोई प्रतिक्रिया न देकर बस भारत को विकास  के पथ पर अग्रसर करते रहे।  भारत के राष्ट्रपति APJ ABDUL KALAM ने भी इनकी प्रशंसा कर  कहा था कि"यह ऐसे देशभक्त है जो देश को राजनीति से सर्वोपरी मानते है "  अटल बिहारी वाजपेयी भी इनके और इनके कार्यों के बड़े प्रशंसक थे।  इनके काल में ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष नीति  (International Monetary Fund policy) शुरू की गयी , जिसके कारण बैंकों  में होने वाले भ्रष्टाचार में काफी कमी आई थी। 
1996 में कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। तब नरसिम्हा राव ने राजनीती से सन्यास के बाद कई  किताबें लिखीं जिसमे THE INSIDER NOVEL प्रमुख थी जिसमे उन्होंने अपने राजनीतिक सफर का वर्णन कर दुनिया को बहुत सारी ऐसी बातों से अवगत कराया। 

कई भाषाओं के थे ज्ञाता 

वे कई भाषाओँ के ज्ञाता थे। उनका साहित्यिक ज्ञान उन्हें और राजनेताओं से अलग करता था। उन्हें 17 भाषाओँ का ज्ञान था और संस्कृत के बड़े विद्वान थे। तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, उड़िया, बंगाली और गुजराती के अलावा वे अंग्रेजी, फ्रेंच , अरबी, स्पेनिश, जर्मन और पर्शियन बोलने  और लिखने में पारंगत थे। साहित्य के अलावा उन्हें कंप्यूटर प्रोग्रामिंग जैसे विषयों में भी रूचि थी। इसके आलावा उन्हें फिल्मों से भी लगाव था। 

  विदेश नीति थी प्रशंसनीय 

विदेश नीति के तहत में इन्होने पश्चिमी यूरोप, चीन और अमेरिका से सम्बन्ध सुधारने पर बल दिया। भारत-इजराइल सम्बन्ध को और प्रगाढ़ किया। इजराइल को भारत की राजधानी दिल्ली में अपना दूतावास खोलने की अनुमति प्रदान की । आसियान देशों से भारत के संबंधों की सटीक समीक्षा कर उन्हें अपने करीब लाया। 

कश्मीर को लेकर थी स्पष्ट नीति 

तब काश्मीर को लेकर बहुत सारी चर्चाएं हुआ करती थीं। लेकिन नरसिम्हा राव की सोच सबसे अलग थी। उन्होने ही संसद में ये बिल पास करवाया था की कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है।  उन्होंने उस समय संसद में अपने भाषण के दौरान कहा  था की  -" भारत और पाकिस्तान के  बीच संघर्ष की स्थिति है , और ये मतभेद की स्थिति सिर्फ इसलिए है की पूरा कश्मीर भारत हिस्सा है , और कश्मीर का कुछ हिस्सा जो उनके नियंत्रण में है ,वो हमें किसी भी हाल में वापस लेना है। " उनके इस बिल का उनके ही पार्टी के कुछ लोग विरोध कर रहे थे ,लेकिन उन्होंने इसे संसद में ध्वनिमत से पारित करवाया था। इस बिल के प्रभाव दूरगामी साबित हुए। तभी तो इन्हे भारत की राजनीती का चाणक्य कहा जाता है। 

पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव की मृत्यु  

23 December 2004 को नरसिम्हा राव का निधन श्वास लेने में काफी तकलीफ के कारण AIIMS में  हुआ। इनके निधन के पश्चात इनके अंतिम संस्कार की घटना भी काफी विवादास्पद रही। दिल्ली में हुए अंतिम संस्कार में इनके पार्थिव  शरीर को लेकर एक बहुत ही विदारक घटना घटी । जिस पर बहुत ही विवाद हुआ था। उनका परिवार उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में करना चाहता था, राव के बेटे प्रभाकर ने कहा था की, “दिल्ली ही उनकी कर्मभूमि है।” लेकिन कांग्रेस आलाकमान के निर्णय के अनुसार बाद में उनके शव को हैदराबाद भेज दिया गया। 



June 28, 2020

CORONA AND PRIVATE TEACHERS

CORONA AND PRIVATE TEACHERS 

कोरोना और प्राइवेट शिक्षक 


कल से हम भी कुछ और सोचेंगे !
क्या ?
हम भी सब्जी या कुछ और बेचेंगे ! और क्या ! ( मजाक करते हुए वो बोले )
क्या हुआ जी आपको ? कैसी बात कर रहे हैं ?
हाँ.... तो क्या करेंगे ? प्राइवेट काम करने वाले को कौन देखने वाला है ? खासकर प्राइवेट शिक्षक लोग को !
क्या हुआ ? इस महीने भी सैलरी नहीं मिला क्या ?
कहाँ से मिलेगा ? मार्च से बस किसी तरह चल रहा है जीवन। सब सोचता है हमलोग के पास बहुत पैसा है। और सब स्कूल वाला तो अरबपति है जैसे। पैसा ही अभिभावक लोग नहीं दे रहा है तो कहाँ से स्कूल वाला भी देगा सैलरी ?
लेकिन सब तो बोलता है की सैलरी देना स्कूल का काम है।
बोलने से क्या होता है ? स्कूल वाला के पास थोड़े न उतना पैसा होता है जो ! सब सोचता है की मेरा पैसा बच जायेगा इस साल। इसी चक्कर में पैसा जमा नहीं कर रहा है सब।
क्यों स्कूल के पास पैसा नहीं है क्या सैलरी देने को ?
तो क्या ? स्कूल का भी तो काफी खर्च है। सब स्कूल वाला थोड़े न धनवान है ?सब हर स्कूल का तुलना करता है बड़ा -बड़ा उद्योगपति वाला स्कूल से ,जिसके पास दस साल भी पैसा न आये तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यहां तो कितना ही  स्कूल बंद हो गया। सिर्फ फीस नहीं जमा करने के कारण।
फिर भी.....
फिर भी क्या... सब अपना प्रॉपर्टी बेच के थोड़े न देगा सैलरी ? इक्का दुक्का स्कूल होगा ,जिसका अपना बिल्डिंग है ,बहुत स्कूल किराया पर चल रहा है ,और किराया भी तो आप जानते ही हैं कितना है आजकल।
कुछ नहीं हुआ तो जुगाड़ ?
आप जुगाड़ की बात करते हैं ,यहाँ जान पर आफत है। हम पढ़ रहे थे सोशल मीडिया पर की दो-तीन टीचर सब्जी बेच रहा था ,बताइए जरा , वो भी बड़े शहरों के टीचर ,क्या हाल हो गया है देश का। अब क्या करेगा ,जब वेतन मिलेगा ही नहीं तो गुजारा के लिए तो यही सब न करेगा !
ओ... 
सब मायाजाल है। सब फंस जायेगा देखिएगा आप ! अभी न सब संवेदनहीन हो के बैठा है ,सब स्कूल वाला को बड़ा समझ रहा है न सब , सब फंस जायेगा।
कैसे फंस जायेगा ? सब का तो और अच्छा है न ! सब का पैसा बच रहा है तो। 
हाँ.... आप भी बोल लीजिये।। छिड़क लीजिये आप भी नमक ,घाव पर।
अरे नहीं मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है 
फिर सब पढ़ायेगा अपना उसी स्कूल में सब अपना अपना बच्चा लोग को वहीं पर जहाँ का फीस लाखों में है और क्या। अभी न सब ऐसे कर रहा है। बाद में  बहुत पछतायेगा ,आप देख लीजियेगा।
मतलब अब आप शिक्षक का पेशा छोड़ देंगे क्या ,आगे आप पढ़ें बंद करेंगे क्या ?
रहेंगे क्यों नहीं ?
तो फिर ? (मेरे इस " तो फिर " का जवाब शायद उनके पास नहीं था )
बताइये न ! लोगों के मन में क्या है ? अगर फीस नहीं भरेगा तो कैसे चलेगा ? हमलोग क्या करें ? भूखे मर जाये ?अगर एक भी शिक्षक इस वक़्त मर गया न तो सरकार को  सब समझ आ जायेगा।
कुछ नहीं समझ आएगा सरकार को ! आप उसके वोट बैंक नहीं है , सिर्फ पब्लिक है , आप हैं भी तो इतने छोटे वोट बैंक हैं ,जिससे उसको कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। 
इस बार आप सही बात बोले हैं। सबको हम लोग से ही रिलीफ चाहिए। ऐसा कैसे चलेगा ?
सब रिलीफ चाहता है ,इसमें किसी को क्यों बुरा लगेगा ?
तो ये कोई रिलीफ लेने का कोई तरीका है ? अरे , सरकार से रिलीफ मांगिये न ! यहाँ सरकार कुछ बोला ही नहीं है , सोशल मीडिया पर अफवाह उड़ाते फिर रहा है सब , सरकार ये बोला ,सरकार वो बोला। कोई तरीका है क्या ये ?सब अपने मन से ही जो हो रहा वो बोल रहा है।
हम तो सुने हैं की कोर्ट बोला  है ,फीस नहीं लेना है ?
ओ....  तब मतलब की आप भी उन्ही सब में हैं जो आम का इमली समझते रहते हैं ,क्या बोला कोर्ट ? सिर्फ यही की ट्युशन  फीस लीजियेगा लेकिन दवाब नहीं बनाइयेगा। और कोई चार्ज अभी नहीं कीजियेगा। यही बोला है न कोर्ट अभी तक। लेकिन सोशल मीडिया का प्रोफेसर लोग कुछ और ही बताते फिर रहा है। प्रशासन और सरकार ,दोनों चुप्पी साध लिया है ,क्या सरकार को नहीं पता है की कैसा -कैसा अफवाह उड़ रहा है जो ?
मैंने उनको बीच में रोकते हुए बोलै.... अरे नहीं मै तो हर महीने ट्युशन फीस दे रहा हूँ , बाद में देना पड़ेगा ही मै जानता हूँ , तो बाद में एक ही बार देने में लोड हो जायेगा। बच्चा भी तो पढ़ ही रहा है , टीचर लोग ऑनलाइन पढ़ा ही रहे हैं , मेहनत  तो उनका और बढ़ गया है , क्योंकि ऑनलाइन पढाने में बहुत माथा खराब होता है  , हम समझते हैं ,बहुत मेहनत कर रहे हैं अभी सब टीचर लोग।
आप बिलककुल ठीक कर रहे हैं , हाँ हम समझते हैं की कुछ लोग परेशान होगा , जो रोज कमाने -खाने वाला है उसे होगा थोड़ा बहुत परेशानी ,लेकिन और लोग का  क्या ? यहाँ सबको बस एक बहाना चाहिए। हम ये भी जान रहे  हैं की ऑनलाइन में पढ़ने का तरीका ठीक नहीं है ,लेकिन जहाँ कुछ नहीं हो सकता है , वहां कुछ तो हो रहा है , समझ ही नहीं रहा है सब।
ये भी बात ठीक है आपकी।।।
अच्छा !!! और सुनिए जरा आप !
क्या.... ?
कुछ लोग तो ऐसा कैंपेन चला रहे हैं की " NO SCHOOL - NO FEE "  बताइये हम लोग अपना मर्जी से स्कूल बंद करके घर में बैठे हैं क्या ? अगर ये कोरोना नहीं होता तो ? कम से कम इस विपदा में लोगों को एक दूसरे के काम आना चाहिए की नहीं ?
चाहिए तो.... लेकिन 
उस पर भी अपने आपको कुछ समाजसेवी कहने वाला लोग भी उसमे शामिल हो गया है।  इसमें क्या समाजसेवा है, बताइये आप ?क्या हमलोगों का घर-वार नहीं है क्या , हमलोग समाज से बाहर के हैं क्या ? एक तो ऐसे ही हमलोग परेशान हैं , ऊपर से ये लोग भी हमलोग का परेशानी बढ़ा रहा है।
हम्म... सब वोट लेना चाहता होगा और क्या ! मै क्या कर सकता हूँ आपके लिए , बताइये !
आपलोग जैसा लोग को ये सोशल मीडिया में प्रचार करना चाहिए ,अभिभावकों में जागृति लाने का कोशिश करना चाहिए। आपलोगों का बात बहुत लोग समझेगा भी और बुझेगा भी। 
मैंने हँसते हुए कहा... कितना लोग सुनेगा ? आप एक बात समझ लीजिये , ये सोशल मीडिया है , ये दिन को रात और रात को दिन बोलता है , कोई भी आपके समर्थन में नहीं आएगा।  और उल्टा मजाक बनाएगा आपका।  हमको भला - बुरा कहेगा सो अलग। हमको तो इस मामले में आप माफ़ ही कर  दीजिये , यहाँ तो लोग रिश्तों को भी उल्टा -पुल्टा बताके आपके लिए भ्रान्ति फ़ैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इसलिए मै ऐसा नहीं करूँगा। 
देखे.... आप भी पीछे हैट गए न ! यही हो रहा है सब का यही हाल है। चलिए... कोई बात नहीं , अब शाम शाम ज्यादा हो गया है , मुझे चलना चाहिए।
मै उन्हें जाता हुआ बस देख रहा था , कितनी सारी बात उन्होंने कही थी ,यही सोचने लगा , लेकिन उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से किसी को दोषी भी नहीं कहा और अपनी बेबसी भी बयां कर गए। उनसे ज्यादा बेबस अब मै अपने आप को पा रहा था की मै भी उनके लिए कुछ नहीं कर सकता।  जबकि मैंने बात ही बात में मदद करने की बात की थी , लेकिन बड़े ही साफगोई से उन्होंने बात को बदल दिया था। सचमुच में स्वाभिमानी निकले वो, माँगा कुछ नहीं ,बस अपनी बात से ही सब को बता दिया की गरीब वो नहीं कोई और है। ऐसे शिक्षकों का स्वाभिमान ही इनकी दौलत होती होती है।  चलिए ये वक्त भी निकल जायेगा , लेकिन ये समय भी बहुत कुछ सीखा और बता रहा है। 



Saturday, June 27, 2020

June 27, 2020

सैम मानेकशॉ; Sam Manekshaw

सैम मानेकशॉ


इनका पूरा नाम  सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ था। गोरखों की कमान संभालने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी थे। गोरखों ने ही उन्हें सैम बहादुर के नाम  से पुकारना शुरू किया। मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। 94 साल की उम्र में इनका निधन 27 जून 2008 को  हुआ।  27 जून को इनकी पुण्यतिथि है। 
1971 की भारत -पाकिस्तान युद्ध के नायक जनरल मानेकशॉ अपनी सूझ -बूझ ,निर्भीकता ,और जीवटता के लिए मशहूर थे। मानेकशॉ को 1971 की लड़ाई के बाद फील्ड मार्शल की उपाधि दी गयी थी। 
मानेकशॉ अपने सख्त अनुशासन के साथ -साथ , हाजिर जवाबी के लिए तथा हँसी - मजाक करने की प्रवृति के लिए भी मशहूर थे। शुरुआती पढाई अमृतसर में करने के बाद शेरवुड कॉलेज से अपनी पढाई पूरी की।  मानेकशॉ INDIAN MILITARY ACADEMY के पहले बैच के अधिकारी थे।1937 में एक समारोह के लिए लाहौर गए सैम की मुलाकात सिल्लो बोडे से हुई। दो साल के बाद 22 अप्रैल 1939 को उन्होंने  सिल्लो बोडे से शादी कर ली। उनकी मृत्यु वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल में 27 जून 2008 को हुई। 

अपनी बहादुरी के लिए थे प्रसिद्द 

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बर्मा के पोस्ट पर वे फ्रंटियर फाॅर्स रेजिमेंट के कप्तान के पद पर तैनात थे। यहीं जापानी सेना से लड़ते हुए उन्हें सात गोलियां लगी थीं। और वे गंभीर रूप से घायल थे। डॉक्टर्स ने भीउनकी गंभीर स्थिति को देखते हुए  इनका इलाज़ करने से मना कर दिया था। तब इनके एक गोरखा सैनिक ने डॉक्टर पर बन्दूक तान कर मानेकशॉ का इलाज करवाया। तब कुछ दिनों के बाद आखिरकार मानेकशॉ स्वस्थ हुए। इलाज के दौरान डॉक्टर के पूछने पर उन्होंने हँसते हुए कहा ये सब कुछ नहीं है ,बस आप इलाज कीजिये। जबकि उन्हें सात गोलियां लगी थीं ,फिर भी उनमे कसीस तरह का भय नहीं था। उनका एक ही मंत्र था -" जब तक जान है ,तब तक लड़ो "  

हाजिर जवाब में थे माहिर  

1971 के भारत -पाकिस्तान युद्ध के दौरान जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उनसे सेना की तैयारियों के बारे पूछा की -क्या सेना की सारी तयारी हो चुकी है ? तो मानेकशॉ ने बड़े ही चुटीले अंदाज में उन्हें तुरंत जवाब दिया -" I am always ready sweety "
प्रधानमंत्री को भी ऐसे चुटीले अंदाज में जवाब देना ,उन्हें औरों से बिलकुल अलग करती थी। जो यह दर्शाता था की युद्ध जैसे विपरीत हालात में भी वो कितने सामान्य दिख रहे थे ,जो उनके हौसलों की एक अलग ही कहानी बयां कर रही थी। 
लेकिन 1971 के युद्ध के बाद जब यह अफवाह फैली की मानेकशॉ तख्तापलट करने वाले हैं तो ,इंदिरा गाँधी के माथे पर बल पड़  गए। तब उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इंदिरा गांधी से मुलाकात की और कहा -"मैडम... ?आपकी नाक बहुत लम्बी है ,और मेरी भी नाक बहुत लम्बी है ,लेकिन मैं कभी भी किसी दूसरे के मामले में अपनी नाक नहीं घुसाता "
स्पष्ट था की मानेकशॉ ये कहना चाहते थे की उनकी और प्रधानमंत्री दोनों  की अपनी एक प्रतिष्ठा थी ,जिसे वो कायम रखना चाहते थे। और भारत सरकार  का तख्तापलट करने का उनका या उनकी सेना का कोई इरादा नहीं है ,तख्तापलट की बात एक कोरी अफवाह के सिवा  कुछ नहीं है। 

कई युद्धों में ले चुके थे हिस्सा 

मानेकशॉ 1934 से 2008 तक वीर भारतीय सेना के अंग से जुड़े रहे। उन्होंने भारत द्वारा लड़े  गए लगभग सभी युद्धों में अपनी वीरता का परचम लहराया। 
द्वितीय विश्व युद्ध जो 1939 -1945 के बीच लड़ी गयी ,वो बर्मा के मोर्चे पर तैनात थे 
1947 के भारत -पाकिस्तान युद्ध में भी इनकी विशेष भूमिका रही 
1962 में भारत -चीन युद्ध में भी इन्होने हिस्सा लिया 
1971 में भारत -पाकिस्तान के युद्ध में इनकी प्रसिद्धि और बढ़ गयी थी ,जहाँ इनके दिशा निर्देशन में पाकिस्तान की फ़ौज को घुटने टेकने पर विवश होना पड़ा। 
1962 से सारी लड़ाईयां इनके ही नेतृत्व में लड़ी गयी और इन्होने हर युद्ध में अपने देश का सर हमेशा ऊँचा रखा। 

मानेकशॉ को मिलने वाले वीरता सम्मान 

  • फील्ड मार्शल की उपाधि 1973 
  • पद्मभूषण  1968 
  • पद्मविभूषण 1972 
  • सैन्य क्रॉस 

मानेकशॉ को था अपने पर बहुत विश्वास 

1971 के युद्ध के बाद उनसे जब ये पूछा गया की -"अगर आप बँटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए होते तो क्या होता ?"
तो उन्होंने मजाक में हँसते हुए जवाब दिया -"होता क्या... ?तब सारी लड़ाइयों में मै पाकिस्तान की तरफ से लड़ता और उसे हरने नहीं देता।"लेकिन मेरा सौभाग्य है मै भारत में हूँ। 1947 में भी इन्होने अपनी सूझ-बूझ से काश्मीर पर भारत सेना का नियंत्रण पाने में ,तथा स्थितियों को सँभालने में मदद की थी।  7 जून 1969 को सैम मानेकशॉ ने भारत के 8वें चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ का पद ग्रहण किया था। 15 जनवरी 1973 को वे फील्ड मार्शल के पद से सेवानिवृत्त हुए।

चूड़ियाँ पहन लो 

1962 में जब चीन के साथ लड़ते हुए मिजोरम की एक बटालियन ने युद्ध से दुरी बनाये रखने का मन बनाया तो मानेकशॉ ने उस बटालियन को चूड़ियां भिजवा दी थी ,और साथ इ सन्देश भिजवाया की - अगर लड़ाई से पीछे हटना है तो चूड़ियां पहन कर घर को चल दो। उनके इस बात का उस बटालियन पर काफी असर पड़ा और उन्होंने युद्ध में बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लिया और अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया था ,हालांकि उस युद्ध में भारत के पराजय का दुःख मानेकशॉ को ताउम्र रहा। 
June 27, 2020

DEPRESSION : CAUSE AND REMEDY

DEPRESSION : CAUSE AND REMEDY 

अवसाद : कारण और उपचार 


डिप्रेशन के शिकार होने पर आत्महत्या कर लेना, ये वर्तमान में एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। लोगों में सहने की शक्ति का ह्रास एक विकराल रूप धारण कर चुका है। जिसके कारण लोग अपनी इहलीला समाप्त कर लेते हैं। क्यों उठा लेते हैं लोग ये कदम ?
 कोई व्यक्ति डिप्रेशन में आत्महत्या क्यों कर लेता है? आखिर क्या है डिप्रेशन की वजह, लक्षण और इसका इलाज ?
  यह जरूरी नहीं है कि डिप्रेशन या अवसाद के लिए व्यक्ति के साथ कोई बड़ा हादसा या टेंशन जिम्मेदार हो। रोजमर्रा के उचित -अनुचित कार्यों से भी लोग डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। 

 डिप्रेशन के मुख्य कारण-


  • व्यक्ति के बेहद करीबी  लोगों का दूर हो जाना।
  • परिवार से दूर अकेले रहना।
  • भविष्य को लेकर होने वाली चिंता।
  • असुरक्षा की भावना का पैदा होना।
  • पैसे से जुड़ी समस्या के साथ कोई पारिवारिक समस्या।
  • पारिवारिक कलह। 
  • सदैव मानसिक/ शारीरिक रूप से प्रताड़ित होना या किया जाना। 
  •  अपनी भावनाओ को व्यक्त करने में अक्षम होना। 
  •  अपने आपको सर्वज्ञाता या सबसे मूर्ख समझना । 
उपरोक्त सारे कारणों में सबसे मुख्य कारण पहला है ,जब कोई भी व्यक्ति अपनों से दूर हो जाता है ,तो वो भारी तनाव की जिंदगी जीने लगता है। चाहे वो अपने उनके रिश्तेदार हों ,प्रेमी हो ,प्रेमिका हो या ऐसा कोई भी जिसे वो हद से ज्यादा प्रेम करता हो। भले ही वो एक छोटा सा बच्चा ही क्यों न हो। जब अचानक से वे अलग होते हैं तो बहुत लोग इसको स्वीकार ही नहीं कर पाते हैं ,उनका मन ये मानने को तैयार ही नहीं होता है की जिसे वो इतना स्नेह दे रहे थे ,वे उनसे दूर हो गए हैं। वैसे भी आपको कुछ्लोगों की एक आदत सी हो जाती है ,जरा सा भी समय उनके बिना एक लम्बा वक्त सा लगता है। और ऐसे में अगर उनके पास कोई और आशा दिलाने वाला न हो तो स्थिति भयावह हो जाती है। और वे अकेलेपन का शिकार होकर आत्महत्या जैसे निर्णय भी ले लेते हैं। 

डिप्रेशन के लक्षण

  • अवसाद के दौरान व्यक्ति का स्वभाव पल-पल बदलता रहता है जिसे मूड स्विंग्स भी कह सकते हैं।
  • व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, पलायनवादी रवैया, व्यवहार में आने वाला अजीब बदलाव, अचानक से रोने की इच्छा, मादक द्रव्यों के सेवन, या बहुत तेज गुस्सा करने जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
  • आत्महत्या करने की प्रबल इच्छा होती है। ऐसे लोग या तो इस बारे में बातें करते हैं या चुपचाप अपने जीवन को खत्म करने की कोशिश करते हैं।
  • व्यक्ति दूसरों से मिलना-जुलना छोड़ देते है।
  • अकेला रहना और कम बोलना पसंद करते है।
  • इसके अलावा उन्हें हमेशा एक अनजाने खतरे की आशंका बने रहने के साथ घबराहट या भय भी बना रहता है।
  • दिल की धड़कन तेज रहना।
  • तेजी से सांस लेना और लगातार पसीना आना भी अवसाद के लक्षणों में से है।

 डिप्रेशन का उपचार 

  • डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति को कभी भी अकेले न छोड़ें। ऐसे व्यक्ति को अकेला छोड़ना घातक हो सकता है।
  • डिप्रेशन के बारे में पता लगते ही रोगी व्यक्ति के इलाज के लिए अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें।
  • डिप्रेशन ठीक करने के लिए सबसे जरूरी चीज है घर का खुशनुमा माहौल ,इसलिए अपने घर में खुशनुमा माहौल बनाए रखें ना कि कलह का वातावरण हो।   
  •  योग, व्यायाम, संगीत, नृत्य तथा परिवार एवम् अच्छे मित्रों का साथ बनाए रखें ।
  •  हंसते रहें, हंसाते रहें ।
  • डिप्रेशन से ग्रसित व्यक्ति को हरसंभव व्यस्त रखें। 

डिप्रेशन से बचने के लिए भोजन में करें ये बदलाव

  • डिप्रेशन के रोगी को भरपूर मात्रा में पानी पीना चाहिए। उन्हे ऐसे फलों का सेवन अधिक करना चाहिए जिनमें पानी की मात्रा अधिक हो।
  • हरी पत्तेदार सब्जियों और मौसमी फलों का खूब सेवन करें।
  • चुकन्दर का सेवन डिप्रेशन के मरीजों को जरूर करना चाहिए। चूकन्दर में काफी मात्रा में ऐसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमिटर्स की तरह काम करते हैं और अवसाद के रोगी में मूड को बदलने का काम करते हैं।
  • डिप्रेशन के मरीज भोजन और सलाद में टमाटर का सेवन अवश्य करें। टमाटर में मौजूद लाइकोपीन नाम का एंटी-ऑक्सिडेंट पाया जाता है जो अवसाद से लड़ने में मदद करता है। एक शोध के अनुसार जो लोग सप्ताह में 4-6 बार टमाटर खाते हैं वे सामान्य की तुलना में कम अवसाद ग्रस्त होते हैं।
  •  सूखे मेवे, अलसी का सेवन करें ।
  •  अत्यधिक मांसाहार ना करें ।
  • किसी भी प्रकार के एल्कोहल तथा तंबाकू आदि के सेवन से बचना उचित है। 
आप सदैव स्वस्थ और  तंदुरुस्त रहें तथा खुद से प्यार करें  क्योंकि ज़िन्दगी एक अनमोल चीज है ,और सुख -दुःख का सम्मिश्रण है। बीती बातों का तनाव लेकर आप अपने आगे के रास्तों को खुद कठिन कर लेते हैं। हालांकि यह भी सच है की कुछ चीजों को कहना तो आसान है ,मगर कठिन वक्त को झेलना काफी मुश्किल भरा होता है। जो इस दौर से गुजर रहे होते हैं ,उन्हें काफी तकलीफों का सामना करना पड़ता है ,लेकिन अपने आपको वक्त देकर अवसाद के क्षणों से निकला जा सकता है ,भले वक्त कुछ ज्यादा लग जाये ,लेकिन अपने आपको वक्त देकर अवसाद से निपटा जा सकता है। इस भाग दौड़ की जिंदगी  में आपको कौन प्यार करता है या नहीं करता है ,ये कदापि न सोचें ,लोगों से बहुत ज्यादा उम्मीद भी न लगायें तो ये बेहतर होगा। बस एक दूसरे का सहयोग लेकर आगे बढ़ने का रास्ता तैयार करें। कौन आपके साथ है या नहीं है इसका तनाव लिए बिना अपने लक्ष्यों की तरफ बढिये ,यकीन मानिये आप जरूर सफल रहेंगे। जो आपके साथ हैं ,उनका आभार प्रकट करें ,लेकिन जो साथ न हों उनसे कोई बैर भी मत रखिये ,ऐसा करने से भी आप वेवजह के तनाव से बचे रहेंगे।   

   


Sunday, June 21, 2020

June 21, 2020

GEORGE CANTOR


GEORGE CANTOR(1845-1912)








George cantor was one of the famous mathematician. George cantor called in full name George Ferdinand Ludwig Philip cantor . He was born on 3rd march, 1845 at st. Petersburg in Russia . He was a German mathematician who founded set theory and introduced the mathematically meaningful concept of transfinite numbers.
 Cantor's parents were Danish. Cantor is known for the inventor of set theory that later became a fundamental theory in  mathematics. His artistic mother was a Roman catholic came from a family of musicians and his father was a merchant . Cantor was the oldest of six children.
In 1956, George's father became ill and moved the family to "Frankfurt ". Cantor's mathematics talents emerged prior to his 15th birthday while he was studying in a private school. His father wanted to become him engineer and transferred to the university of Berlin to specialize in physic,philosophy and mathematics.
 He was taught by the mathematician " Karl Weierstrass "  whose specialization of analysis probably had the greatest influence on him. Ernst Edward kummer was specialized in higher arithmetic and Leopold Kronecker was specialist in the theory of number who latter opposed him . During his studying time he wrote his doctoral thesis in 1867 ," De Aequantionipus secundi Gradus Interminatis" .
                                      He also established the importance of one - to- one correspondence between the members of two sets ,who defined infinite and well defined ordered sets. He also proved the real number and also defined the cardinal and ordinal number. He first encountered sets while working on problems on trigonometric series . 
In 1884 ,cantor suffered from a nervous breakdown. Due to illness ,
 his application for teaching at Berlin as a professor was turned down . He founded the German mathematical in 1889 ,and also worked towards establishing the FIRST INTERNATIONAL CONGRESS OF MATHEMATICIANS. 
Probably he lost all of his enthusiasm for mathematics. During suffered from 2nd bout of depression in 1889 and the death of his son too worsened his condition.
He was awarded by Royal society from Sylvester Medal .
Lastly , He died on 6 Jan ,1912  at place Halle, in Germany.

Saturday, June 20, 2020

June 20, 2020

भारतीय सेना के अमूल्य 'राष्ट्र रक्षा सूत्र; Indian Army Slogans


 भारतीय सेना के अमूल्य 'राष्ट्र रक्षा सूत्र; Indian Army Slogans 




भारतीय सेना की गिनती दुनिया के सबसे पेशेवर सेना में होती है। भारतीय सेना अपने युद्ध कौशल और चुनौतीपूर्ण कार्यों को सरलता के साथ करने के लिए विख्यात है। चाहे युद्ध का मैदान हो या आपदाओं से निपटना हो ,हर जगह भारतीय सेना ने अपनी सर्वश्रेष्ठता सिद्ध की है। 
भारतीय सेना की स्थापना 1 अप्रैल , 1895 में हुई थी | वर्तमान में भारतीय सेना के पास 12.5 लाख सक्रीय सैनिक और लगभग इतने ही सुरक्षित सैनिक है। भारतीय सेना अब तक पाकिस्तान की सेना को चार बार हरा चुकी है। भारतीय सेना के प्रमुख कमांडर भारत के राष्ट्रपति होते हैं। भारतीय सेना के मुख्य तीन अंग हैं -
थल सेना ,वायु सेना और नौ सेना। 
भारत के चीफ डिफेन्स ऑफ़ स्टाफ - विपिन रावत 
भारत के थल सेना अध्यक्ष  - मुकुंद नरवणे 
भारत के नौ सेना अध्यक्ष   - एडमिरल करमवीर सिंह 
भारत के वायु सेना अध्यक्ष - राकेश सिंह भदौरिया 
भारतीय सेना दुर्गम इलाकों में अपने युद्ध कौशल और सटीक रणनीति के लिए विशेष रूप से जानी जाती है। अभी हाल ही में कई सर्जिकल स्ट्राइक करके विश्व भर में अपनी वीरता का परिचय दिया। जो विशेष रूप से आतंकवादियों को खत्म करने के अभियान से जुड़ा हुआ था। 
                   
                   भारतीय सेना की चर्चा हम सबसे पहले इनके महत्वपूर्ण वाक्यों से शुरु करेंगे। 


भारतीय सेना के सर्वश्रेष्ठ अनमोल वचन:


इन्हें पढकर सबों को गर्व की अनुभूति होती है...हमारा आत्मविश्वास और सेना के प्रति निष्ठा में वृद्धि होती है। 

 : भारतीय सेना के अमूल्य 'राष्ट्र रक्षा सूत्र :


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 " ईश्वर हमारे दुश्मनों पर दया करे, क्योंकि हम तो करेंगे नहीं।"
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हमारा झंडा इसलिए नहीं लहराता क्योंकि हवा चल रही होती है, बल्कि यह हर उस जवान की आखिरी सांस से लहराता है जो इसकी रक्षा में अपने प्राणों का त्याग कर देता है |
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" हमारा झण्डा इसलिए नहीं फहराता कि हवा चल रही होती है, ये हर उस जवान की आखिरी साँस से 

फहराता है जो इसकी रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देता है।"
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" हमें पाने के लिए आपको अवश्य ही अच्छा होना होगा, हमें पकडने के लिए आपको तीव्र होना होगा, 

किन्तु हमें जीतने के लिए आपको अवश्य ही बच्चा होना होगा।"
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" आतंकवादियों को माफ करना ईश्वर का काम है, लेकिन उनकी ईश्वर से मुलाकात करवाना हमारा 

काम है।"
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" इसका हमें अफसोस है कि अपने देश को देने के लिए हमारे पास केवल एक ही जीवन है।"
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 कैप्टन विक्रम बत्रा ( परम वीर चक्र )

" मैं तिरंगा फहराकर वापस आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, लेकिन मैं वापस अवश्य आऊंगा।"
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लेह-लद्दाख राजमार्ग पर साइनबोर्ड (भारतीय सेना)

" जो आपके लिए जीवनभर का असाधारण रोमांच है, वो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी है। "
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       कैप्टन मनोज कुमार पाण्डे
परम वीर चक्र, 1/11 गोरखा राइफल्स

" यदि अपना शौर्य सिद्ध करने से पूर्व मेरी मृत्यु आ जाए तो ये मेरी कसम है कि मैं मृत्यु को ही मार डालूँगा।"
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 ऑफिसर्स  ट्रेनिंग अकादमी, (OTA- Chennai))
" हमारा जीना हमारा संयोग है, हमारा प्यार हमारी पसंद है, हमारा मारना हमारा व्यवसाय है।"
 हमारा जीना हमारा संयोग है, हमारा प्यार हमारी पसंद है, दुश्मन को मारना हमारा जुनून है  
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फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ

" यदि कोई व्यक्ति कहे कि उसे मृत्यु का भय नहीं है तो वह या तो झूठ बोल रहा होगा या फिर वो इंडियन आर्मी का गोरखा जवान  ही होगा।"
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 भारत को जो करना नमन छोड़ दे,कह दो वो मेरा वतन छोड़ दे ||मजहब प्यारा है जिसे भारत नहीं ,वो इसकी मिटटी में होना दफ़न छोड़ दे। (एक भारतीय फौजी )
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शहीद स्मारक कोहिमा
जब आप घर जायें,उन्हें हमारे बारे में जरूर कहना। आपके कल के लिए,हमने अपना आज दिया है 
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कारगिल विजय दिवस की जीत पर
 तू शहीद हुआ,तो न जाने, कैसे तेरी माँ सोयी होगी ,लेकिन एक बात तो तय है कि ...तुझे लगने वाली गोली भी,सौ बार रोयी होगी।

भारतीय सेना के बारे में और जानने के लिए हमारे ब्लॉग के साथ जुड़े रहे.....आगे हम इनके पराक्रम से जुडी  बातों की विस्तृत चर्चा करेंगे। 


Thursday, June 18, 2020

June 18, 2020

rani lakshmibai :रानी लक्ष्मीबाई ;पुण्य जयंती विशेष

रानी लक्ष्मीबाई ;पुण्य जयंती विशेष 

रानी लक्ष्मीबाई मराठा प्रदेश के झाँसी राज्य की रानी थी। अपनी वीरता और साहस के लिए ये शहीद वीरांगना हमलोगो के लिए एक प्रेरणास्रोत है। लक्ष्मीबाई के किस्से उनकी वीरता और रोमांच से भरे हैं। इनकी वीरता ने भारत देश के लिए एक नए इतिहास का सृजन किया। आज उनकी पुण्य जयंती है। सिर्फ 29 वर्ष की छोटी आयु में ही अंग्रेजों से युद्ध करते हुए रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुई। सिर पर तलवार की वार से लक्ष्मीबाई की मृत्यु लड़ते -लड़ते हुई। भारत देश इनकी शहादत का हमेशा ही  ऋणी रहेगा। 

नाम                         मणिकर्णिका  ताम्बे  , लक्ष्मीबाई  नेवलेकर , मनु 
जन्म                       1828 
मृत्यु                        1858
पिता                         मोरोपंत  ताम्बे
माता                       भागीरथी  बाई सापरे 
पति                         गंगाधर राव नेवलेकर 
संतान                      दामोदर  राव,  आनंद  राव (दत्तक पुत्र)
घराना                     मराठा  साम्राज्य
उल्लेखनीय1857 का स्वतंत्रता संग्राम 

अन्य जानकारियां 


  • जन्म स्थान - वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत
  • विवाह तिथि - 19 मई 1842
  • गृहनगर - विठुर, जिला- कन्नपुर (अब कानपुर), उत्तर प्रदेश, भारत
  • धर्म - हिन्दू 
  • अभिरुचि - घुड़सवारी करना, तीरंदाज़ी करना
  • मृत्यु तिथि - 18 जून 1858 
  • मृत्यु स्थान - कोटा की सराय, ग्वालियर, 
  • आयु - (मृत्यु के समय) -29 वर्ष 
  • मृत्यु - कारण - शहीद,सिर पर तलवार के वार से
  • लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपंत मराठा बाजीराव की सेवा में थे।चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग उसे प्यार से "छबीलीकहकर बुलाते थे ।लक्ष्मीबाई ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली।उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ।   
  • वो झाँसी की रानी बनीं।
  • विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। 
  • सन् 1851 में  लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। 
  • परन्तु मात्र चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी।
  • तब राजा गंगाधर राव ने एक  पुत्र को गोद लिया  
  • पुत्र गोद लेने के बाद 1853 में गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। 
  • दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया। 


 राजा गंगाधर की मृत्यु के बाद ब्रिटिश शाषकों ने  बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया।
 राज्य का खजाना जब्त कर  लिया तब  रानी को झाँसी का क़िला छोड़कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा।
पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें  झाँसी राज्य की रक्षा करने का करने का निर्णय ले लिया था। 
1857 के संग्राम का झाँसी एक प्रमुख केन्द्र बन गया।
 रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा के लिए  और एक  सेना का गठन प्रारम्भ किया।
इस सेना में महिलाओं की भर्ती भी की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया।
जनता ने भी इस संग्राम में लक्ष्मीबाई का भरपूर सहयोग दिया। 
1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा और दतिया के राजा ने झाँसी पर
आक्रमण किया जिसे लक्ष्मीबाई सफलतापूर्वक विफल कर दिया।
1858 के जनवरी माह में ब्रिटिश सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को
 घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रिटिशों  ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया।
लेकिन लक्ष्मीबाई और  दामोदर राव अंग्रेज़ों से बच कर  निकलने में सफल रहे 
इसके बाद लक्ष्मीबाई कालपी पहुँच कर तात्या टोपे से मिली।
तात्या टोपे और लक्ष्मी बाई  की संयुक्त सेना ने  ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। 
लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरताचालाकी
और दृढ़ता के लिये तो प्रसिद्ध थी हीसाथ ही साथ सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी
 कैप्टन रॉड्रिक ब्रिग्स : जिसने रानी लक्ष्मीबाई को लड़ाई के मैदान में लड़ते देखा।
और बताया की कैसे रानी लक्ष्मीबाई ने  घोड़े की रस्सी अपने दाँतों से दबाई हुई थी और
 दोनों हाथों से तलवार चला रही थीं तथा  एक साथ हर तरफ  वार कर रही थीं।
वो बहुत ही साहसी और विध्वंसक दिख रहीं थीं। 
 एक और अंग्रेज़ जॉन लैंग ने रानी लक्ष्मीबाई को नज़दीक से देखा था और लक्ष्मीबाई की
 कुछ विस्मयकारी बातों की प्रशंसनीय चर्चा की।
रेनर जेरॉस्च ने  भी जॉन लैंग को  बताया, 'रानी मध्यम कद की तगड़ी महिला थीं  .
अपनी युवावस्था में वो और अधिक सुन्दर रही होगी।  लेकिन अब भी उनके चेहरे का आकर्षण कम नहीं था.
 उनका रंग बहुत साफ़ नहीं था। उन्होंने एक भी ज़ेवर नहीं पहन रखा था। सिर्फ सोने की बाली जरूर थी।
उन्होंने सफ़ेद मलमल की साड़ी पहन रखी थीउनकी आवाज़ थोड़ी भरी थी ,लेकिन एक साहसी औरत थी। 
 हेनरी सिलवेस्टर ने अपनी किताब 'रिकलेक्शंस ऑफ़  कैंपेन इन मालवा एंड सेंट्रल इंडियामें लिखा,
 "अचानक रानी ज़ोर से चिल्लाई, 'मेरे पीछे आओ ,और तब क्षण भर में ही पंद्रह घुड़सवारों का एक जत्था उनके
पीछे हो लिया।  वो लड़ाई के मैदान से इतनी तेज-तर्रार थी  कि अंग्रेज़ सैनिकों को इसे समझ पाने में कुछ समय
लग गया।  अचानक रॉड्रिक ने अपने साथियों से चिल्ला कर कहा, 'दैट्स दि रानी ऑफ़ झाँसीकैच हर.'" कुछेक मील जाने के बाद एक अंग्रेज़ सैनिक ने उनके सीने में संगीन
 भोंक दी थीवो तेज़ी से मुड़ीं और अपने ऊपर हमला करने वाले पर पूरी ताकत से तलवार लेकर टूट पड़ीं,
लेकिन तलवार का एक वार उनके सिर पर बहुत तेजी से लगा। 
"अंग्रेज़ों को मेरा शरीर नहीं मिलना चाहिए." ये कहते हुए वो वीरगति को प्राप्त हो गयीं।
वहां पर मौजूद लक्ष्मीबाई सैनिकों ने  रानी के पार्थिव शरीर को आग लगा दी थी। 
ऐसी वीरांगनाएं विरले ही जन्म लेती हैं ,हमारा सौभाग्य है की हम और हमारा देश इसके साक्षी हैं।