Breaking

Saturday, May 30, 2020

May 30, 2020

India-China dispute [भारत - चीन अवरोध ]

            India-China dispute  [भारत - चीन अवरोध ]



भारत चीन के बीच उत्पन्न तनाव का मुख्य कारण कई सालों से LINE OF ACTUAL CONTROL (LAC) है। इस LAC की लम्बाई लगभग 3500 किलोमीटर है। कई बार भारतीय सेना को PETROLING से रोकने की मंशा से चीन कोई न कोई विवाद खड़ा करता ही रहता है।
 भारतीय सीमा में होने वाली गश्त में रुकावट पैदा करने की चाल कोई नई नहीं है। विशेष रूप से लद्दाख और सिक्किम में LAC के करीब चीनी सेना लगातार आक्रामक रूख अपनाती रहती है। जिसका भारतीय सेना ने हमेशा ही धैर्य और वीरता के साथ सामना किया है।

        भारतीय सेना द्वारा बनाये जा रहे दौलत बेग ओल्डी रोड इस बार के तनाव का मुख्य कारण है और चीन अपनी पूरी शक्ति के साथ विरोध जता कर रोकना चाहता है। जवाब में भारत ने अपनी सेनाओं को वह तैनात कर दिया है। दोनों तरफ से सेनाओं का जमावड़ा वहां होने लगा हैऔर टकराव  की स्थिति बनी हुई है।  जून 2017 में भी डोकलाम विवाद के समय भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई थी। पिछली बार की तरह इस बार भी भारतीय सेना पीछे हटने को तैयार नहीं है।

 और ये बदलते भारत की पहचान बन गई है।  हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का यह कथन सहसा याद भी आ जाता है की न आँख उठा कर बात करेंगे न आँख झुका कर बात करेंगे बल्कि हम आँख में आँख मिला कर बात करेंगे। सेना अध्यक्ष मुकुल नरवणे ने भी (LAC) का दौरा किया और शीर्ष कमांडरों के साथ मीटिंग कर स्थिति की समीक्षा की तथा आवश्यक दिशा -निर्देश देकर यह जता दिया की भारत किसी भी चुनौती से निपटने को तैयार है। 

चीन की संदिग्ध गतिविधियां 

  1. चीन द्वारा पैंगोंग झील और गालवन घाटी में अनावश्यक सैनिकों                       की संख्या में इज़ाफ़ा करना। 
                                     2. भारतीय सेना के विरोध के बावजूद  में अपने 100 से ज्यादा टेंट                                                                 लगाना।
                                    3. LAC के पास बनकर बनाने से जुडी सामग्री का इकठ्ठा करना।
                                    4. चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) भारतीय सीमा में लगातार                                                                घुसपैठ करना। 

चीन का झूठ 

  1. पूर्वी लद्दाख सेक्टर में चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय पेट्रोलिंग टीम को बंधक बनाने की बात कहना।
  2.  बंधक बनाने के बाद रिहा करने  की बात कहना।  

            ये बातें भ्रामक रूप से फैलाई गई और भारतीय सेना ने इसका पुरज़ोर खंडन किया और बताया  की ये बिलकुल भी सच नहीं है। भारतीय सेना ने यह भी स्पष्ट कर दिया की किसी भी तरह की चीनी घुसपैठ को सफल नहीं होने देंगे और अपनी गश्ती दल को और सुरक्षित व मजबूत करेंगे । 
            इस प्रकार दोनों देशों कि सैनिकों की तैनाती में इज़ाफ़ा हो रहा है। दोनों देशों की सेनाओं को LAC के पास हाई अलर्ट पर रखा है। 

 चीन की सीनाजोरी 

चीन द्वारा यह कहना की सैनिकों में तनाव की मुख्य वजह भारतीय सैनिक है जिन्होंने रॉड्स और पत्थर फेंक कर हमला किया, बिलकुल गलत है। जबकि चीन द्वारा गर्मियों के शरुआत में LAC के पास इस प्रकार की गतिविधियां करना आम बात है। जवाब में भारतीय सैनिक हमेशा उन्हें LAC के पीछे धकेलते हैं। अगर 1967 के युद्ध में भारतीय सेना के शौर्य  से वे वैसे भी चिढ़े रहते है। 

रणनीतिक महत्व:-

लद्दाख का क्षेत्र रणनैतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है।  लद्दाख के एक बड़े हिस्से पर क्रमशः चीन और पाकिस्तान का कब्ज़ा है। गालवन  नदी पर चीन का अवैध कब्ज़ा है। यह नदी काराकोरम से पहाड़ी से निकलती है। इसमें देपसांग के पठारी इलाके भी शामिल है।  और भारत ने अपनी पहुँच को बनाने के लिए सड़क निर्माण को 2019 में पूरा कर लिया। 1960  से पहले तक चीन  इसके पूर्वी छोर तक ही दावा करता था लेकिन 1962 के बाद इसके पश्चिमी किनारे तक के दावे पर अड़ा है। 1962 के युद्ध के बाद हालाँकि चीन अपने पहले वाली यानी 1960 के स्थिति में लौटी। 

चीन  की चालबाज़ी 

  1. घुसपैठ कर इलाकों को अपना बताकर दुष्प्रचार करना। 
  1. छोटे स्तर पर भी अन्य जगहों पर घुसपैठ कर भारतीय सैनिकों तथा रणनीतिकारों का ध्यान बंटाना। 
  1. तनाव बढ़ता देख अपने रूख को नरम कर लेना। 
  1. भारतीय सैनिकों  पर आरोप लगाना। 

भारतीय सेना के जवाबी कार्रवाई में विदेश  मंत्रालय की प्रतिक्रिया ने भी चीन के कस -बल ढीले कर दिए। विदेश मंत्रालय ने साफ़ लहज़े में में कह दिया की भारतीय सैनिक जो भी कर रहे है वो अपने इलाके में ही कर रहे है। भारत की यही दृढ इच्छा चीन को अब खलने  लगी है। सही भी है, क्यूंकि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है।  कई मायनो में यह चीन से भी आगे जा चुका है और वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाने में सफल रहा है। 

चीन अपराजेय नहीं है:-

यह बात भारत को पता है। भारत ने जब 1967 में कुछ सैनिकों के दम पर ही चीन के 450 सैनिक शहीद कर दिए थे तो दुनिया आश्चर्य में पड़ गई थी। हालाँकि इस छोटे से युद्ध में हमारे भी 70 वीर सैनिक शहीद हुए थे और चीन बेशर्मी से इस हार की चर्चा करने से बचता रहा। जनरल सगत सिंह इस युद्ध के मुख्य नायकों में से एक थे। यह युद्ध नाथुला दर्रे के पास लड़ी गई थी। उस समय सिक्किम भारत का एक संरक्षित राज्य था। जिसकी सुरक्षा भारत के हाथों में थी।

चीन  का हठ का कोई कारण नहीं बनता क्योंकि 

  1. सर्वे ऑफ़ इंडिया के अनुसार 1865 में बने नक़्शे के अनुसार अक्साई  चिन जम्मू कश्मीर का हिस्सा है। 
  2. 1911 के बाद PRC की स्थापना के बाद भी (सनयात  सेन के नेतृत्व में )अक्साई  चिन को लेकर कोई विवाद नहीं।
  3. 1933 तक चीनी ऐटलसों में  अक्साई चिन को भारत का हिस्सा बताया गया। 
  4. आज़ाद भारत में भी अक्शाई चिन भारत का हिस्सा माना गया।  

भौगोलिक स्थिति :-


गलवान घाटी अक्साई चिन का बाहरी हिस्सा है। गलवान नदी अक्साई चिन से होते हुए श्योक नदी में मिलती है। अक्साई  चिन से होकर चीन के जिनझियांग तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।वहीँ वभारत के लिए यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि यहाँ से काराकोरम दर्रे तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।  लगभग 38000 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाके के ज्यादातर हिस्से वीरान है। लेकिन रणनैतिक रूप से यह काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। 

अंतर्राष्ट्रीय सोच :-

वहीँ विश्व जगत के कुछ रणनीतिकारों का मानना है की चीन की ये तनातनी केवल एक चालबाज़ी है। चीन कई मुद्दों से दुनिया का ध्यान बँटाना चाहता है। हालाँकि कुछ स्ट्रैटजिक एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है की भारत पीछे हट ही नहीं सकता है।  परिणामस्वरूप अगर चीन की यह हरकत जारी रही तो दो एशियाई ताकतवर देशों  के बीच एक सैन्य संघर्ष हो सकता है।

चीन के डराने की चाल 

चीन दुसरे देशों को हमेशा से अपनी धौंस दिखाता रहता है। हांगकांग हो या ताइवान सबको अपने जाल में फंसाकर रखा है। कई देशों को क़र्ज़ में डुबोकर अपना हित साधता रहा है। लेकिन भारत देश इसके इन चोंचलों में फंस नहीं सकता ये बात चीन को बहुत अच्छे से पता है। खासकर तब ,जब भारत अपनी एक पुख्ता पहचान विश्व भर में बना चुका है।दुनिया  के अनेकों देश अब भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं , जबकि चीन को विश्व भर में संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। खासकर दक्षिण चीन सागर और कोरोना के फैलाव के मामले में। कह सकते हैं की वैश्विक स्तर पर चीन बाकि देशों के निशाने पर पहले से ही है।
चीन हांगकांग और ताइवान के मुद्दों से लोगों को विचलित करने की कोशिश कर रहा है। और साथ ही साथ वह कोरोना मामले में दुनियभर के लोगों में सदेह की परिधि में बैठा है। मशहूर SECURITY & STRATEGIC EXPERT  'टेलिस ' के अनुसार अगर भारत पीछे हटता है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा ,जो चीन के विकृत मनोबल को बढ़ावा देगा।  लेकिन भारत जैसे को तैसा की नीति पर है। वैसे भी LAC पर भारत को चीन से कई गुना ज्यादा सामरिक लाभ प्राप्त है। 

Wednesday, May 27, 2020

May 27, 2020

UNEMPLOYMENT -PART III

unemployment rate, cause and consequences


        According to the 
unemployment rate data, the male unemployment rate is higher than that of women. The rate of male unemployment in the entire country is around 6. 2 while the unemployment rate among women is around5  .8 While the unemployment rate in the entire country 6. 1 is These figures are for the financial year 2017-2018. Currently the unemployment rate is much higher. It is also being said that the unemployment rate is at its highest level of 45 years. The Central Statistics Office (CSO) releases unemployment statistics.



Urban unemployment 

 Migration to cities in search of employment is not new. People go to cities in search of better employment , but the unemployment rate of cities is higher than that of villages. If we talk about Share, then it is about 8 percent while in villages it is around 6 percent.


Government side

Due to the government's practices, where many people have to lose their jobs, the opposition also does not stop making fun of unemployment. The previous governments, the present government, the opposition and all do not take any concrete steps but just throw their blame on each other.


Definition of unemployment 


Despite the country's workforce, they do not get work at prevailing wages is the exact definition of unemployment. Unemployment rate is increasing day by day due to non-availability of operational wages to the mentally and physically qualified workforce. People are going through mental torture. However, this definition has been termed as "involuntary unemployment" by Professor J.M. Keynes.


There are many forms of unemployment: -

(1) Active unemployment: - It depends on economic boom or fall.



(2) Weather-based: - It is unemployment generated mainly in the agricultural sector. No special weather work or more work and no work in a few months.


(3) Open state unemployment: - Despite the abundance of manpower, no labour is available. Such unemployment is mainly among educated people.



Schemes: - 


The schemes being run to remove unemployment also do not appear to be implemented. The situation in some states is worse. Such as Bihar, Uttar Pradesh, West Bengal, Odisha. More recently, the Prime Minister Unemployment Allowance has been introduced. Even the benefits of these allowances can be called transient. Prime Minister Mudra Yojana is also proving to be inadequate to provide livelihood to the industries.



Other major causes of unemployment: -

(1) Changes in social structure after industrial revolution. (2) The education system should be based on the environment of Western countries. (3) Massive increase in population. (4) Slow process of industrialization. (5) Backwardness of agriculture. (6) Shortage of skilled and trained.




Consequences 

Unemployment is like a stigma for any country. Disappointment is evident on the faces of young men wandering in search of employment with degrees. The loss of manpower due to unemployment and stunting of economic development results in a major problem. 
May 27, 2020

बेरोज़गारी दर, कारण और परिणाम , unemployment rate ,

बेरोज़गारी दर,   कारण  और   परिणाम 

        आंकड़ों के अनुसार पुरुष बेरोज़गारी दर महिलाओं की अपेक्षा अधिक है। पुरे देश में पुरुष बेरोज़गारी की दर लगभग 6. 2 है जबकि महिलाओं में बेरोज़गारी दर 5. 8  के आसपास है। जबकि पुरे देश में बेरोज़गारी की दर 6 . 1  है। ये आँकड़े वित्त वर्ष 2017-2018 के है। वर्तमान में बेरोज़गारी की दर की कहीं अधिक है। कहा तो ये भी जा रहा है की बेरोज़गारी दर अपने 45 वर्ष के उच्चतम स्तर पर है। केंद्रीय साँख्यिकी कार्यालय बेरोज़गारी के आँकड़े जारी करता है।

शहरी बेरोज़गारी  

 रोज़गार की तलाश में शहरों की ओर पलायन कोई नयी बात नहीं। लोग बेहतर रोज़गार की तलाश में शहरों में एक बेहतर संभावना की तलाश में जाते तो हैं ,लेकिन शहरों की बेरोज़गारी दर गाँवो की तुलना में अधिक है। अगर शेरोन की बात करें तो यह लगभग 8 प्रतिशत जबकि  में गाँवो में 6 फीसदी के आसपास आंकड़ों के अनुसार है।

सरकारी पक्ष- विपक्ष

सरकार की कुनीतियों के कारण जहाँ कई लोगों को अपने रोज़गार से हाथ धोना पड़ता है वहीँ विपक्ष भी बेरोज़गारी का मज़ाक बनाने में पीछे नहीं रहता है। गत सरकारें, वर्तमान सरकार, पक्ष विपक्ष सभी कोई ठोस कदम न उठाकर सिर्फ एक-दूसरे पर अपना ठीकरा फोड़ते है।

बेरोज़गारी की परिभाषा 

देश के कार्यबल होते हुए भी उन्हें प्रचलित मजदूरी पर कार्य न मिलना बेरोज़गारी की सटीक परिभाषा है। मानसिक व शारीरिक दृष्टि से योग्य कार्यबलों को प्रचालित मजदूरी नहीं मिलने से बेरोज़गारी दर में दिनों-दिन इज़ाफ़ा हो रहा है। लोग मानसिक यातना के दौर से गुजर रहे है। हालांकि इस परिभाषा को "प्रोफेसर जे. एम. कीन्स" ने अनैच्छिक बेरोज़गारी की संज्ञा दी है।

बेरोज़गारी के कई रूप है:-

(1) चक्रिय बेरोज़गारी:- यह आर्थिक तेज़ी या ,आदि पर निर्भर करता है।

(2) मौसम पर आधारित:- यह मुख्यतः कृषि क्षेत्र में उत्पन्न बेरोज़गारी है। किसी विशेष मौसम काम या ज्यादा काम मिलना और कुछ महीनों में कोई काम न मिलना।


(3) खुली अवस्था वाली बेरोज़गारी:- श्रमबल की प्रचुरता के बावजूद कम् नहीं मिलना। ऐसी बेरोज़गारी मुख्यतः शिक्षित लोगों में ज्यादा है।


योजनायें :-

बेरोज़गारी दूर करने के लिए चलायी जा रही योजनायें भी कार्यान्वित होती नहीं दिखतीं। कुछ राज्यों की स्थिति तो बदत्तर है। जैसे -बिहार ,उत्तर प्रदेश ,पश्चिम बंगाल ,उड़ीसा। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री बेरोज़गारी भत्ते की शुरुआत की गई है। इन भत्तों का लाभ भी तो क्षणिक ही कह सकते हैं। उद्योगों को संजीवनी  प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना भी नाकाफी साबित होती दिख रही है।


बेरोज़गारी के अन्य प्रमुख कारण :-

(1) औद्योगिक क्रांति के बाद सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन।
(2) शिक्षा व्यवस्था का पश्चिमी देशों के वातावरण पर आधारित होना।  
(3) जनसँख्या में बेतहाशा वृद्धि।
(4) औद्योगीकरण की मंद प्रक्रिया।
(5) कृषि का पिछड़ापन।
(6) कुशल एवं प्रशिक्षितों की कमी।

परिणाम 

बेरोज़गारी किसी भी देश के लिए एक कलंक की तरह है। डिग्री लेकर रोज़गार की तलाश में भटकते नवयुवकों के चेरे पर निराशा स्पष्ट झलक पड़ती है। बेरोज़गारी के कारण  मानव शक्ति का नष्ट होना और आर्थिक विकास का अवरुद्ध होना एक बड़ी समस्या में परिणत हो जाता है। 

Tuesday, May 26, 2020

May 26, 2020

UNEMPLOYMENT -II (eng)


UNEMPLOYMENT -II 

That is why some one has said on unemployment and other issues ……. 
                           Five year plan, not one or three!
                           Paper flowers took away the smell of everyone !!


These lines were written at a time when thirteen years passed since independence. That is, even at that time the poet was vocal about unemployment and was opposing government policies and mechanisms. But due to unemployment, even food and drink were unavailable for many people. But the ears of the governance systems have not stood up till date. Unemployment figures are even more frightening if some states are specifically talked about. The question is, why is there such a scenario even today ..?
 Are governments helpless which cannot bring any level of investment…? 
Do governments not have funds that cannot scuttle or revive some factories ..? 
Do governments lack an educated class…? 
Do governments have a shortage of human resources …….?
 Do governments have a shortage of natural resources ……?
                                 i think it is not at all. The apathy of the present or past governments has filled the people with despair. People do not understand what to do, what not to do. Some people will also find such people who get some employment in private institutions or in factories for a few days, but after some time they become wandering, .i.e wandering in search of new job.
        The condition of lower class and lower middle class is worst. But the middle class has more misdeeds. As most of the middle class people are educated and they spend many years searching for a work of style, many people also pass a long time in searching a job fit for him or her . Because they cannot do the work like the lower class, because educated people are self-respecting somewhere and they want to choose the profession according to their education. And perhaps this is also the reason for unemployment of such educated people somewhere. Because they are not able to do any other work. Many employment courses are conducted by governments, but what is the use of them when there is no employment. Many schemes are carried out to increase the skill of the people, but what is the result, Dhak ke teen paat (hindi proverb means nothing found )
            Particularly the feeling of despair among the youth group affects any country in many ways. Just say that there is not only a slowness in the development of the country, but also comes to a standstill. Because they have to struggle day by day from the means of their living. In the process of making oneself self-reliant, it has been a position to throw. In this sequence, millions of people have to go through a kind of disappointment that is destroying  their mental consciousness and their positive thinking. 

            Still, this question stands on the left side - Why ? 
(1) Government machinery 
(2) Large population 
(3) Unhelpful educational system 
(4) Semi skills 
(5) Economic weakness or 
       Then those themselves who are unable to choose the right career for their livelihood. Do not stay focused on the right things according to your ability. I consider it a big reason for unemployment ....... how? I will keep discussing this in my further article. 
                                                                                                To be continued …………………

May 26, 2020

UNEMPLOYMENT -II

 बेरोजगारी ही नहीं अन्य मुद्दों पर किसी ने कहा है........ 

                           पांच वर्षों की बनी योजना, एक दो नहीं तीन !
                           कागज के फूलों ने ली सबकी खुश्बू छीन !!


ये पंक्तियाँ उस वक़्त लिखी गई जब आज़ादी के तेरह साल बीत चुके थे।  यानी बेरोजगारी को लेकर उस समय भी लोग  मुखर थे और सरकारी नीतियों का और तंत्रों का विरोध कर रहे थे।  लेकिन बेरोजगारी के कारण खाने पीने तक के लाले पड़े हुए थे। लेकिन शासन तंत्रों के कान आज तक खड़े हुए ही नहीं। कुछ राज्यों की अगर विशेष रूप से बात की जाये तो बेरोजगारी के आँकड़े और भी भयावह है।  सवाल तो ये है की आज भी इस तरह के परिदृश्य क्यों है..?
क्या सरकारें लाचार  है जो किसी भी स्तर का निवेश नहीं ला सकती.... ? 
क्या सरकारों के पास धन नहीं है जो कुछ कल-कारखानों को खोल या पुनर्जीवित नहीं कर सकती ..? क्या सरकारों के पास एक शिक्षित वर्ग की कमी है ...? 
क्या सरकारों के पास मानव संसाधन की कमी है........ ?
क्या सरकारों के पास प्राक़ृतिक संसाधनो की कमी है..... ?

                                 मेरी दृष्टि में तो ये सब बिलकुल भी नहीं है।  वर्त्तमान या विगत सरकारों की उदासीनता ने लोगों में निराशा का भाव भर दिया है। लोगों को समझ में नहीं आता क्या करें ,क्या न करें। कुछ लोग ऐसे भी मिल जायेंगे जिन्हे निजी संस्थानों में या कल-कारखानों में कुछ दिन के लिए कोई रोजगार तो मिल जाता है लेकिन कुछ समय पश्चात वे घूमंतु-भोटिया  बन जाते है यानि रोज़गार की तलाश में भटकते रहते हैं। 
        निम्न वर्गऔर निम्न मध्यम वर्ग की स्थिति तो सबसे ख़राब है। लेकिन मध्यम वर्ग वालों दुश्वारियां कहीं ज्यादा है।क्यूँकि मध्यमवर्ग वाले अधिकांश लोग शिक्षित होते ही हैं और वे ढंग का एक काम खोजने में ही कई साल लगा देते हैं ,कई लोग जीवन भी गुजार देते हैं। क्यूँकि निम्न वर्ग वालों की तरह कार्य वे कर ही नहीं सकते क्यूँकि शिक्षित लोग कहीं न कहीं  स्वाभिमानी भी होते  हैं और पेशा का चुनाव भी वो अपनी शिक्षा के अनुसार करना चाहते हैं। और शायद कहीं न कहीं इस तरह के शिक्षितों की बेरोज़गारी का कारण ये भी है। क्योंकि वे कोई दूसरा काम कर ही नहीं पाते हैं। सरकारों द्वारा कई रोज़गार परक कोर्सेस करवाए जाते है किन्तु इनका क्या फ़ायदा जब किसी तरह का रोज़गार ही न मिले। लोगों के स्किल को बढ़ाने  के लिए कई योजनायें चलाई जाती है लेकिन नतीजा क्या निकलता है वही ढाक के तीन पात !
            विषेशतः युवा वर्ग के लोगों में निराशा के भाव का उत्पन्न होना यह किसी भी देश को कई मायनों में प्रभावित करता है। यूं कहे की देश के विकास में  एक धीमापन ही नहीं बल्कि ठहराव सा आ जाता है। क्यूंकि इन्हें अपने जीवन-यापन के तौर -तरीकों से ही दिन -रात जूझना पड़ रहा है।  अपने को स्वावलम्बी बनाने की प्रक्रिया में झोंक देना पड़  रहा है। इस क्रम में लाखों लोग को एक तरह की अग्नि -पीड़ा से गुजरना पड़ रहा हैजो उनके मानसिक चेतना को और उनकी धनात्मक सोच को जलाकर खाक कर रहा है। 
            फिर भी ये प्रश्न तो मुंह बाये ही खड़ा है -दोषी कौन ?
            (1) सरकारी तंत्र  
            (2)बड़ी आबादी 
            (3) अनुपयोगी शैक्षिक तंत्र
            (4) अर्द्ध  कौशल 

            (5) आर्थिक कमज़ोरी  या 
       फिर वे खुद जो अपने जीवन -यापन के लिए सही कैरियर का चुनाव ही नहीं कर पाते हैं। अपनी क्षमता के अनुसार सही चीज़ों के ऊपर केंद्रित नहीं रहना। मैं इसे बेरोज़गारी का एक बड़ा कारण मानता हूँ....... कैसे ? इसके बारे में मैं अपने आगे के आर्टिकल में चर्चा करता रहूंगा। 
                                                                                                                 

Saturday, May 23, 2020

May 23, 2020

unemployment part-1 (eng)


UNEMPLOYMENT (PART-I)


I belong to a lower middle class family and am a citizen of India, educated, and even aware of the basic needs of life,
food, clothing and a shelter !!
If we leave other material things, then our basic needs are these three. The family is responsible for the fulfillment of these three. But till when...... !!! Until we stand on our feet. What does it mean to stand on feet?
Employment....!
You must be thinking what's new in this? Many things have been written, said and heard on this. I also want to say the same. Really ! This is not a new thing at all. Barring the pre-independence period, the situation of our country has not changed in this context since it became independent. That is why one of the eminent poets of that time, Nagarjuna ji has said…
                   The country is hungry, naked, injured, from unemployment,
                           not full of bread and health, from beggar to rate. 
Due to the corrupt mechanisms of governance, five-year plans also could never hit the ground, and government policies left us nowhere, the situation remains as it is. But I do not mean just employment in governmental systems but also to create and provide employment opportunities in any field by creating some form of employment. Are we or is our system, able to do this? Probably not.
Was the previous governments honest about this? And if it was, why are the figures of unemployment so frightening? Whenever I read and assess writers and poets right after independence, I find that unemployment was already there and was at its peak and presently the climax too Is on 

                                                                                                      To be continued.....................

Friday, May 22, 2020

May 22, 2020

UNEMPLOYMENT(PART-I)



UNEMPLOYMENT(PART-I)


मैं एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार का हुँ और भारत का नागरिक हूँ , शिक्षित हुँ  ,और जीवन की मूल जरूरतों के बारे में जानता भी हुँ ,
भोजन , वस्त्र और एक आश्रय !!
अगर बाकी भौतिक चीजों को छोड़ दें तो हमारी मूल जरूरत भी यही तीन हैं। इन तीनो की पूर्ति की जिम्मेदारी परिवार की होती है। लेकिन कब तक...... !!! तब तक ,जब तक की हम अपने पैरों पर न खड़े हो जाएँ। पैरों पर खड़ा होने का मतलब क्या है ?
रोजगार....!
आप  सोच रहे होंगे इसमें नया क्या है ? इस पर तो कई चीजें लिखी ,कही  और सुनी जा चुकी हैं। मैं भी यही कहना चाहता हुँ। सचमुच ! ये बिल्कुल भी नयी चीज नहीं है। आजादी के पहले की बात छोड़ दें तो ,जब से देश आजाद हुआ है हमारे देश की वस्तुस्थिति इस सन्दर्भ में बदली ही नहीं है। तभी तो उस समय के प्रख्यात कवियों में से एक नागार्जुन जी ने कहा है ....
                             देश हमारा भूखा- नंगा , घायल है बेकारी से ,
                         मिले न रोटी -रोजी भर के ,दर दर बने भिखारी से 
शासन के भ्र्ष्टाचारी तंत्रों से ,जिसके कारण पंचवर्षीय योजनाएँ भी धरातल पर कभी भी नहीं उतर सके ,और सरकारी नीतियों ने हमें कहीं का भी नहीं छोड़ा ,परिणामस्वरूप स्थितियाँ जस की तस बनी हुई है। लेकिन मेरा मतलब सिर्फ सरकारी तंत्रों में रोजगार से नहीं है बल्कि किसी भी क्षेत्र में रोजगार का कोई न कोई स्वरुप सृजित कर रोजगार के मौके उपलब्ध करने और कराने से  भी है। क्या हम या हमारा तंत्र ऐसा कर पा रहा है ? शायद नहीं।
क्या गत सरकारें इसके लिए ईमानदार थी ? और अगर थी तो बेरोजगारी के आंकड़े इतने भयावह क्युं हैं ?आज़ादी के ठीक बाद के लेखकों और कविओं को जब भी मैं पढता हूँ और उसका आकलन करता हूँ तो यही पाता हूँ की बेरोजगारी तो पहले भी थी और चरमसीमा पर थी और वर्तमान में भी चरमोत्कर्ष पर है।