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Tuesday, May 26, 2020

UNEMPLOYMENT -II

 बेरोजगारी ही नहीं अन्य मुद्दों पर किसी ने कहा है........ 

                           पांच वर्षों की बनी योजना, एक दो नहीं तीन !
                           कागज के फूलों ने ली सबकी खुश्बू छीन !!


ये पंक्तियाँ उस वक़्त लिखी गई जब आज़ादी के तेरह साल बीत चुके थे।  यानी बेरोजगारी को लेकर उस समय भी लोग  मुखर थे और सरकारी नीतियों का और तंत्रों का विरोध कर रहे थे।  लेकिन बेरोजगारी के कारण खाने पीने तक के लाले पड़े हुए थे। लेकिन शासन तंत्रों के कान आज तक खड़े हुए ही नहीं। कुछ राज्यों की अगर विशेष रूप से बात की जाये तो बेरोजगारी के आँकड़े और भी भयावह है।  सवाल तो ये है की आज भी इस तरह के परिदृश्य क्यों है..?
क्या सरकारें लाचार  है जो किसी भी स्तर का निवेश नहीं ला सकती.... ? 
क्या सरकारों के पास धन नहीं है जो कुछ कल-कारखानों को खोल या पुनर्जीवित नहीं कर सकती ..? क्या सरकारों के पास एक शिक्षित वर्ग की कमी है ...? 
क्या सरकारों के पास मानव संसाधन की कमी है........ ?
क्या सरकारों के पास प्राक़ृतिक संसाधनो की कमी है..... ?

                                 मेरी दृष्टि में तो ये सब बिलकुल भी नहीं है।  वर्त्तमान या विगत सरकारों की उदासीनता ने लोगों में निराशा का भाव भर दिया है। लोगों को समझ में नहीं आता क्या करें ,क्या न करें। कुछ लोग ऐसे भी मिल जायेंगे जिन्हे निजी संस्थानों में या कल-कारखानों में कुछ दिन के लिए कोई रोजगार तो मिल जाता है लेकिन कुछ समय पश्चात वे घूमंतु-भोटिया  बन जाते है यानि रोज़गार की तलाश में भटकते रहते हैं। 
        निम्न वर्गऔर निम्न मध्यम वर्ग की स्थिति तो सबसे ख़राब है। लेकिन मध्यम वर्ग वालों दुश्वारियां कहीं ज्यादा है।क्यूँकि मध्यमवर्ग वाले अधिकांश लोग शिक्षित होते ही हैं और वे ढंग का एक काम खोजने में ही कई साल लगा देते हैं ,कई लोग जीवन भी गुजार देते हैं। क्यूँकि निम्न वर्ग वालों की तरह कार्य वे कर ही नहीं सकते क्यूँकि शिक्षित लोग कहीं न कहीं  स्वाभिमानी भी होते  हैं और पेशा का चुनाव भी वो अपनी शिक्षा के अनुसार करना चाहते हैं। और शायद कहीं न कहीं इस तरह के शिक्षितों की बेरोज़गारी का कारण ये भी है। क्योंकि वे कोई दूसरा काम कर ही नहीं पाते हैं। सरकारों द्वारा कई रोज़गार परक कोर्सेस करवाए जाते है किन्तु इनका क्या फ़ायदा जब किसी तरह का रोज़गार ही न मिले। लोगों के स्किल को बढ़ाने  के लिए कई योजनायें चलाई जाती है लेकिन नतीजा क्या निकलता है वही ढाक के तीन पात !
            विषेशतः युवा वर्ग के लोगों में निराशा के भाव का उत्पन्न होना यह किसी भी देश को कई मायनों में प्रभावित करता है। यूं कहे की देश के विकास में  एक धीमापन ही नहीं बल्कि ठहराव सा आ जाता है। क्यूंकि इन्हें अपने जीवन-यापन के तौर -तरीकों से ही दिन -रात जूझना पड़ रहा है।  अपने को स्वावलम्बी बनाने की प्रक्रिया में झोंक देना पड़  रहा है। इस क्रम में लाखों लोग को एक तरह की अग्नि -पीड़ा से गुजरना पड़ रहा हैजो उनके मानसिक चेतना को और उनकी धनात्मक सोच को जलाकर खाक कर रहा है। 
            फिर भी ये प्रश्न तो मुंह बाये ही खड़ा है -दोषी कौन ?
            (1) सरकारी तंत्र  
            (2)बड़ी आबादी 
            (3) अनुपयोगी शैक्षिक तंत्र
            (4) अर्द्ध  कौशल 

            (5) आर्थिक कमज़ोरी  या 
       फिर वे खुद जो अपने जीवन -यापन के लिए सही कैरियर का चुनाव ही नहीं कर पाते हैं। अपनी क्षमता के अनुसार सही चीज़ों के ऊपर केंद्रित नहीं रहना। मैं इसे बेरोज़गारी का एक बड़ा कारण मानता हूँ....... कैसे ? इसके बारे में मैं अपने आगे के आर्टिकल में चर्चा करता रहूंगा। 
                                                                                                                 

1 comment:

  1. बढ़ती आबादी इसका बड़ा कारण है।

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