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Monday, July 27, 2020

July 27, 2020

ए. पी. जे. अब्दुल कलाम: APJ ABDUL KALAAM ;THE MISSILE MAN


ए. पी. जे. अब्दुल कलाम: APJ ABDUL KALAAM ;THE MISSILE MAN


अबुल पकिर जैनुलअबादीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक मुसलमान परिवार में  हुआ। उनके पिता जैनुलअबादीन एक नाविक थे और उनकी माता अशिअम्मा एक गृहिणी थीं।  परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्हें छोटी उम्र से ही काम करना पड़ा। अपने पिता की आर्थिक मदद के लिए कलाम अखबार  वितरण का कार्य भी करते थे। अपने स्कूल के दिनों में कलाम पढाई-लिखाई में सामान्य थे पर नयी चीज़ सीखने के लिए हमेशा तत्पर और तैयार रहते थे। उनके अन्दर सीखने की भूख थी । उन्होंने अपनी स्कूल की पढाई रामनाथपुरम स्च्वार्त्ज़ मैट्रिकुलेशन स्कूल से पूरी की और उसके बाद तिरूचिरापल्ली के सेंट जोसेफ्स कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने सन 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक किया। उसके बाद वर्ष 1955 में वो मद्रास चले गए जहाँ से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1960 में कलाम ने मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की।

जन्म: 15 अक्टूबर 1931, रामेश्वरम, तमिलनाडु

मृत्यु: 27 जुलाई, 20 15, शिलोंग, मेघालय

पद/कार्य: रक्षा वैज्ञानिक , भारत के पूर्व राष्ट्रपति

 एक वैज्ञानिक और इंजिनियर के तौर पर उन्होंने रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर कार्य किया

डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम एक प्रख्यात भारतीय वैज्ञानिक और भारत के 11वें राष्ट्रपति थे। उन्होंने देश के कुछ सबसे महत्वपूर्ण संगठनों (DRDO & ISRO) में कार्य किया। उन्होंने वर्ष 1998 के पोखरण द्वितीय परमाणु परिक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ कलाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और मिसाइल विकास कार्यक्रम के साथ भी जुड़े थे। इसी कारण उन्हें ‘मिसाइल मैन’ भी कहा जाता है। वर्ष 2002 में कलाम भारत के राष्ट्रपति चुने गए और 5 वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षण, लेखन, और सार्वजनिक सेवा में लौट आए। उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी करने के बाद कलाम ने रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (DRDO) में वैज्ञानिक के तौर पर भर्ती हुए। कलाम ने अपने कैरियर की शुरुआत भारतीय सेना के लिए एक छोटे हेलीकाप्टर का डिजाईन बना कर किया। डीआरडीओ में कलाम को उनके काम से संतुष्टि नहीं मिल रही थी। कलाम पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा गठित ‘इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च’ के सदस्य भी थे। इस दौरान उन्हें प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के साथ कार्य करने का अवसर मिला। वर्ष 1969 में उनका स्थानांतरण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में हुआ। यहाँ वो भारत के सॅटॅलाइट लांच व्हीकल परियोजना के निदेशक के तौर पर नियुक्त किये गए थे। इसी परियोजना की सफलता के परिणामस्वरूप भारत का प्रथम उपग्रह ‘रोहिणी’ पृथ्वी की कक्षा में वर्ष 1980 में स्थापित किया गया। इसरो में शामिल होना कलाम के कैरियर का सबसे अहम मोड़ था और जब उन्होंने सॅटॅलाइट लांच व्हीकल परियोजना पर कार्य आरम्भ किया तब उन्हें लगा जैसे वो वही कार्य कर रहे हैं जिसमे उनका मन लगता है।

1963-64 के दौरान उन्होंने अमेरिका के अन्तरिक्ष संगठन नासा की भी यात्रा की। परमाणु वैज्ञानिक राजा रमन्ना, जिनके देख-रेख में भारत ने पहला परमाणु परिक्षण किया, ने कलाम को वर्ष 1974 में पोखरण में परमाणु परिक्षण देखने के लिए भी बुलाया था।

सत्तर और अस्सी के दशक में अपने कार्यों और सफलताओं से डॉ कलाम भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में प्रसिद्ध बहुत प्रसिद्द हो गए और देश के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में उनका नाम गिना जाने लगा। उनकी ख्याति इतनी बढ़ गयी थी की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अपने कैबिनेट के मंजूरी के बिना ही उन्हें कुछ गुप्त परियोजनाओं पर कार्य करने की अनुमति दी थी।

भारत सरकार ने महत्वाकांक्षी ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ का प्रारम्भ डॉ कलाम के देख-रेख में किया। वह इस परियोजना के मुख कार्यकारी थे। इस परियोजना ने देश को अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें दी है।

जुलाई 1992 से लेकर दिसम्बर 1999 तक डॉ कलाम प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के सचिव थे। भारत ने अपना दूसरा परमाणु परिक्षण इसी दौरान किया था। उन्होंने इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आर. चिदंबरम के साथ डॉ कलाम इस परियोजना के समन्वयक थे। इस दौरान मिले मीडिया कवरेज ने उन्हें देश का सबसे बड़ा परमाणु वैज्ञानिक बना दिया।

वर्ष 1998 में डॉ कलाम ने ह्रदय चिकित्सक सोमा राजू के साथ मिलकर एक कम कीमत का ‘कोरोनरी स्टेंट’ का विकास किया। इसे ‘कलाम-राजू स्टेंट’ का नाम दिया गया।

एक रक्षा वैज्ञानिक के तौर पर उनकी उपलब्धियों और प्रसिद्धि के मद्देनज़र एन. डी. ए. की गठबंधन सरकार ने उन्हें वर्ष 2002 में राष्ट्रपति पद का उमीदवार बनाया। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी लक्ष्मी सहगल को भारी अंतर से पराजित किया और 25 जुलाई 2002 को भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लिया। डॉ कलाम देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे जिन्हें राष्ट्रपति बनने से पहले ही भारत रत्न ने नवाजा जा चुका था। इससे पहले डॉ राधाकृष्णन और डॉ जाकिर हुसैन को राष्ट्रपति बनने से पहले ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जा चुका था।

उनके कार्यकाल के दौरान उन्हें ‘जनता का राष्ट्रपति’ कहा गया। अपने कार्यकाल की समाप्ति पर उन्होंने दूसरे कार्यकाल की भी इच्छा जताई पर राजनैतिक पार्टियों में एक राय की कमी होने के कारण उन्होंने ये विचार त्याग दिया।

12वें राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के कार्यकाल के समाप्ति के समय एक बार फिर उनका नाम अगले संभावित राष्ट्रपति के रूप में चर्चा में था परन्तु आम सहमति नहीं होने के कारण उन्होंने अपनी उमीद्वारी का विचार त्याग दिया।

राष्ट्रपति पद से सेवामुक्त होने के बाद डॉ कलाम शिक्षण, लेखन, मार्गदर्शन और शोध जैसे कार्यों में व्यस्त रहे और भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिल्लोंग, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद, भारतीय प्रबंधन संस्थान, इंदौर, जैसे संस्थानों से विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर जुड़े रहे। इसके अलावा वह भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर के फेलो, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी,तिरुअनंतपुरम  के चांसलर, अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई, में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर भी रहे। इसके अलावा कलाम साहब ने बनारस  हिन्दू यूनिवर्सिटी और अन्ना यूनिवर्सिटी में सूचना प्रौद्योगिकी में अध्यापन का कार्य किया।

कलाम हमेशा से देश के युवाओं और उनके भविष्य को बेहतर बनाने के बारे में बातें करते थे। इसी सम्बन्ध में उन्होंने देश के युवाओं के लिए “व्हाट कैन आई गिव’ पहल की शुरुआत भी की जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार का सफाया है। देश के युवाओं में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें 2 बार ‘एम.टी.वी. यूथ आइकॉन ऑफ़ द इयर अवार्ड’ के लिए मनोनित भी किया गया था।

वर्ष 2011 में प्रदर्शित हुई हिंदी फिल्म ‘आई ऍम कलाम’ उनके जीवन  पर आधारित  व उनके जीवन से प्रेरित थी। शिक्षण के अलावा डॉ कलाम ने कई पुस्तकें भी लिखी जिनमे प्रमुख हैं – ‘इंडिया 2020: अ विज़न फॉर द न्यू मिलेनियम’, ‘विंग्स ऑफ़ फायर: ऐन ऑटोबायोग्राफी’, ‘इग्नाइटेड माइंडस: अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया’, ‘मिशन इंडिया’, ‘इंडोमिटेबल स्पिरिट’ आदि।

पुरस्कार और सम्मान

देश और समाज के लिए किये गए उनके कार्यों के लिए, डॉ कलाम को अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। लगभग 40 विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी और भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण और भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया।


वर्ष                                                          सम्मान                                                 संगठन

2014                              डॉक्टर ऑफ साइंस एडिनबर्ग विश्वविद्यालय ,                  ब्रिटेन


2012                               डॉक्टर ऑफ़ लॉ ( मानद )                                       साइमन फ्रेजर विश्वविद्यालय


2011                              आईईईई मानद सदस्यता                                               आईईईई


2010                            डॉक्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग                                         वाटरलू विश्वविद्यालय


2009                                     मानद डॉक्टरेट                                                ऑकलैंड विश्वविद्यालय


2009                                 हूवर मेडल ASME फाउंडेशन,                             संयुक्त राज्य अमेरिका


2009                  अंतर्राष्ट्रीय करमन वॉन विंग्स पुरस्कार कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान ,    USA


2008                         डॉक्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग नानयांग प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय          सिंगापुर


2007                               चार्ल्स द्वितीय पदक रॉयल सोसाइटी ,                                     ब्रिटेन


2007                        साइंस की मानद डाक्टरेट वॉल्वर हैम्प्टन विश्वविद्यालय                    ब्रिटेन


2000                                        रामानुजन पुरस्कार अल्वर्स रिसर्च सैंटर                       भारत


1998                                     वीर सावरकर पुरस्कार                                              भारत सरकार

1997                                राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार               भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस


1997                                          भारत रत्न                                                            भारत सरकार


1994                                     विशिष्ट फेलो इंस्टिट्यूट ऑफ़ डायरेक्टर्स                        भारत

1990                                            पद्म विभूषण                                                     भारत सरकार


1981                                            पद्म भूषण                                                        भारत सरकार


 27 जुलाई 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिल्लोंग, में अध्यापन कार्य के दौरान  ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गयी।जो पुरे भारतवासियों के लिए एक अपूर्णिय क्षति थी।





Thursday, July 23, 2020

July 23, 2020

CARL FRIEDRICH GAUSS :The Prince of Mathematicians


CARL FRIEDRICH GAUSS

                          The Prince of Mathematicians
                                                               (1777-1855)

                 INTRODUCTION

Carl Friedrich Gauss was a German mathematician and physicist.
Gauss had made significant contributions in many fields of mathematics as well as science.
He was very focused on his work and used to work very hard and his this attitude toward his work lead to the success he had achieved today.
He is referred as ‘PRINCE OF MATHEMATICIANS’ and is considered as one of the three greatest mathematicians of all time along with Archimedes and Newton.
Gauss had an exceptional influence in many fields of mathematics and science.
He is also ranked among history’s most influential mathematician.
He is well known among the youth for his contribution in the field of algebra, geometry and other…

                  SHORT DESCRIPTION

NAME:        JOHN CARL FRIEDRICH GAUSS
BORN:        30 APRIL, 1777              
                    Brunswick Principality of Brunswick
                             (Now in Germany)
DIED:           23 February, 1855 (aged 77)
                     Gottingen, kingdom of Hanover,
                      GermanConfederation.                             
NATIONALITY:       German
STUDYED IN:          Collegiums Carolinum,
                                 University of Gottingen,
                                 University of Helmetedt
 AWARDS:          Lalande Prize (1809)
                            Copley Medal (1838)
FIELDS:               Mathematics and Physics
KNOWN FOR:
1. MATHEMATICS
·      Algebra and Linear Algebra
·      Geometry and differential geometry
·       Number Theory
·      Analysis, numerical analysis, vector calculus and calculus of variations
·      Statistics
·      Knot Theory
Other mathematical areas…
2. Physics
·      Classical Mechanism
·      Quantum Mechanism
·      electromagnetism
3. Cartography
·       Gauss- Kruger coordinate system
·      Gaussian grid
And many more…

PERSONAL LIFE

He was born in Brunswick (Now in Germany).
He had a poor and hard working- class of parents. He was a christen by birth. His mother was illiterate and never recorded the date of his birth, she just remembered the day of his birth was a Wednesday and was 39 days before Easter and then Gauss himself solved the mystery of his own date of birth by calculating the date according to the hints given by his mother.
Gauss was a Child Prodigy as he was extra-ordinary intelligent since young age. There are many stories about his early age intelligence.
Such as: When he was only 3 years old he corrected an error made by his father which was surprising for his all family as he was too young to solve those kinds of problem.
There is another say that when he was in school at the age of 7 he confidentially solved an Arithmetic series problem (i.e. adding all  the integer from 1 to 100) extremely faster than any other then the class of 100 students…
There are many more stories…
After he grew up and studied in many universities.       He married Johanna Osthoff and had two son and one daughter but she (Johanna) died after 4 years (12 October 1804) and his daughter (Louis) dies on the following year. Due to this Gauss was plugged into a depression from which he never fully recovered.
He also married another lady namely Minna Waldeck, with her he also had 3 children.

                  PERSONALITY

Gauss was an ardent perfectionist and hard worker.
He was never a prolific writer and also use to refuse to publish his work which he didn’t consider complete and above critism. He was slightly insecure and protective about his work.
His personal diary is the evidence that he had made many specific and important mathematical discoveries year and decades before publishing them.
It’s a chance that that if he had published all his discoveries in a timely manner, he would have advanced mathematics by 50 years Now.
Gauss was known to dislike teaching but still he did take in a few students and his several students became influential mathematician.
Gauss also recommended so many persons for  different types of awards as he praised others work too…  As he said that
“Mathematicians stand on each other’s shoulders”
                

CAREER AND ACHIVEMENTS

Carl Gauss made lot of discoveries being 

generally regarded as one of the greatest 

mathematicians of all time for his contributions to 

Number theory, geometry, probability theory, 

planetary astronomy, the theory of functions, and 

potential theory.

For example: In Algebra, He proved the 

fundamental theory of algebra which states that 

“every non-constant single variable polynomial 

with complex coefficient has at least one complex 

root.”

He owns so many book like, Disquisitiones 

Arithematicae, etc…

Quote by Gauss
 Mathematics is the queen of the sciences.”

“Life stands before me like an eternal spring with new and brilliant clothes.”
Signature







At last he had done a significant work in different fields of mathematics as well as science. Due to his work, Now many important theories and discoveries can be done. The world will always remember him for his brilliant work…


 



 

        
 




Wednesday, July 22, 2020

July 22, 2020

MICHAEL FARADAY He was not formally educated but he achieved success from what he created

MICHAEL FARADAY

He was not formally educated but he achieved success from what he created.


INTRODUCTION

• Michael Faraday was a most significant and prominent scientist in the history of world.
• His discoveries provides a lot knowledge about the thing that we are using nowadays.
• He was very hardworking.
• He devoted his precious life into the world of science from where he discovered and invented some most usable things.
• “man of god” this sentence fits very well on him.
• He didn’t thought he is a loser, he always thought he will achieve success one day.
• He is best known for his work on electricity and electrochemistry.
• Faraday proposed the law of electrolysis.
• He discovered benzene and other hydrocarbons.

ABOUT HIS PARENTS, FAMILY, SIBLINGS

• Michael Faraday mother’s name is Margaret Hastwell.
• Michael Faraday father’s name James Faraday.
• Michael Faraday wife’s name is Sarah Barnard.
• Michael Faraday siblings are Robert Faraday, Elizabeth Gary, Margaret Barnard, Richard Faraday and Thomas Faraday.

PERSONAL LIFE

• He was born on 22 September 1791 in Newington butts, which is now part of London borough of Southwark but was then a suburban part of Surrey.
• He was third child of his parents.
• He was a devote Christian.
• When he was 14 years old, he was apprenticed next seven years, educated himself by reading books on a wide range of scientific subjects.
• He had most basic school education to educate himself.
• He took more interest in science, especially in electricity.
• He was very inspired by the book of conversation on chemistry by Jane marcet.
• In 1812, when he 20 years old and at the end of his apprentice ship, he attended lectures by eminent English chemist Humphry Davy of the Royal institution and the Royal society and john tatum, founder of the city philosophical society.
• He sent Davy a 300 page book based on notes that he had taken during these lectures. Davy’s reply was immediate, kind and favourable.
• In 1813,when Davy damaged his eyesight in an accident with nitrogen trichloride, he decided to empty Faraday as an assistant.
• The Royal institution’s Jhon Payne had been asked Humphry Davy to find a replacement, thus he appointed Faraday as chemical assistant at Royal institution on 1 March 1813.
• Davy entrusted Faraday with the preparation of nitrogen trichloride samples, and they both were injured in an explosion of this very sensitive substance.
• Biographers have noted that “a strong sense of the unity of god are pervaded Faraday’s life and work.

INVENTIONS AND DISCOVERIES OF MICHEAL FARADAY

1. Electric motor – In 1821, set about trying to understand the work of orsted and ampere devising his own experiment using a small mercury bath. The device which converts electrical energy into mechanical energy, was the first electric motor.
2. Benzene – Benzene was first discovered by Faraday in 1825 in illuminating gas. Faraday did some experiments, and discovered that the new compound had equal numbers of carbons and hydrogens, and so named it ‘carbureted hydrogen’.
3. Electromagnetic induction-Faraday discovered electromagnetic induction on 29 August 1813. He found that, upon passing a current through one coil, a momentary current was induced in the other coil – mutual induction. If he moved a magnet through a loop of wire, an electric current flowed in that wire.
Laws of electromagnetic induction :-
(a) conductor is a closed circuit than the induced current flows through it. Whenever a conductor is placed in a varying magnetic field, EMF induces and this EMF is called an induced EMF and if the conductor circuits are closed current are also induced which is called induced current.
(b) The magnitude of the induced EMF is equal to the rate of change of flux linkages.
4. Electromagnetic generator – Michael Faraday also discovered a generator. This apparatus consists of a tube of neutral material wound with a coil of wire insulted in cotton, and a bar magnet. As the magnet moves the lines of magnetic force repeatedly intersect with the wire exciting
the electrons in the wire and generating electrical current.
5. Laws of electrolysis –
(a) First law of electrolysis is the amount of chemical change produced by current at an electrode electrolyte boundary is proportional to the quantity of electricity used
(b) Second law of electrolysis is The amounts of chemical changes produced by the same quantity of electricity in different substances are proportional to their equivalent weight.

Prizes and medals

❖ Royal medal (1835 and 1846)
❖ Copley medal (1832 and 1838)
❖ Rumford medal (1846)
❖ Albert medal (1866)

 Failures of Michael Faraday

Michael Faraday failed thousands of times and he has recorded all these failures. He wasn’t always so successful, he was asked to make glass. He tried for many months, but in the end was unsuccessful. He was son of a blacksmith and hated his job, but after time his patience paid off.

Quotes by Michael Faraday

▪ Nothing is to wonderful to be true if it be consistent with law of nature .
▪ There’s nothing I quite as frightening as someone who knows they are right.
▪ A man who is certain he is right is almost sure to be wrong.
▪ But still try, for who knows what is possible.
▪ I am not a poet, but if you think for yourselves, as l proceed, the facts will form a poem in your minds.
▪ I could trust a fact and always cross-question an assertion.
▪ The book of nature which we have to read is written by the fingers of God.

Monday, June 29, 2020

June 29, 2020

Prashant Chandra Mahalnobis; The great statistician प्रशांत चंद्र महालनोबिस : एक महान सांख्यिकीविद

Prashant Chandra Mahalnobis; The great statistician
प्रशांत चंद्र महालनोबिस : एक महान सांख्यिकीविद 


P.C.Mahalnobis एक बहुत ही प्रसिद्द वैज्ञानिक और सांखियकीविद थे , जिन्होंने भारत देश के कई योजनाओ में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनकी याद में 29 जून को भारत में सांख्यिकी दिवस मनाया जाता है। इनके द्वारा बताई गयी Mahalnobis Distance एक statistical measurment है जिसका उपयोग सांख्यिकी के क्षेत्र में होता है। इसके साथ वे फेल्डमैन महालनोबिस मॉडल के लिए भी काफी प्रसिद्द हैं। इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए इन्हे कई सम्मान व पुरस्कार प्रदान किये गए जिनकी संख्या भी इनकी प्रखरता के अनुसार अधिक हैं। 
  •  1944 :  ‘वेलडन मेडल’ पुरस्कार
  •  1945 :  लन्दन की रायल सोसायटी में फेलोशिप 
  •  1950 :  ‘इंडियन साइंस कांग्रेस’ का अध्यक्ष बनाया गया 
  • अमेरिका के ‘एकोनोमेट्रिक सोसाइटी’ फेलोशिप 
  •  1952 :  पाकिस्तान सांख्यिकी संस्थान का फेलोशिप 
  • 1954 :   रॉयल स्टैटिस्टिकल सोसाइटी का मानद फेलो 
  •  1957 :  प्रसाद सर्वाधिकार स्वर्ण पदक 
  •  1959 :  किंग्स कॉलेज का मानद फेलो 
  • 1957 :  अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान का ऑनररी अध्यक्ष
  •  1968  : पद्म विभूषण 
  • 1968  :  श्रीनिवास रामानुजम स्वर्ण पदक
इनका जन्म 29 जून 1893 को कोलकाता में हुआ था। इनके पिता प्रबोध चंद्र महालनोबिस ब्रह्मो समाज के एक सक्रीय सदस्य थे। इनकी माता निरोदबासिनि एक सुशिक्षित महिला थीं। इनका विवाह 27 फरवरी 1923 को निर्मल कुमारी महालनोबिस से हुआ था। 
इनके कई शिक्षक भी विश्वप्रसिद्ध लोगों में गिने जाते हैं। भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस तथा शारदा प्रसन्न दास और प्रफुल्ल चंद्र रॉय जैसे विख्यात लोग इनके शिक्षक रहे थे। इन शिक्षकों के सान्निध्य में ही इनकी प्रतिभा का विकास हुआ। मशहूर वैज्ञानिक मेघनाद साहा और विख्यात स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस इनके जूनियर थे। 
इनके ही अथक प्रयास से भारत में इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टिट्यूट की स्थापना हुई ,जो आज विश्व भर में एक ख्यातिप्राप्त संस्थान है। इस संस्थान में बड़े पैमाने पर सैंपल सर्वे का खाका तैयार किया गया था। इन्होने ही भारत के द्वितीय पंचवर्षीय योजना को तैयार किया था। आज़ादी के बाद इन्हे मंत्रिमंडल में सांख्यिकी सलाहकार बनाया गया था। इन्होने देश से बेरोजगारी के उन्मूलन के लिए तत्कालीन सरकार के लिए कई योजनाएं बनाईं थी। 
इनके पिता के ब्रह्मो समाज के एक सदस्य होने के कारण इनकी भी प्रारंभिक शिक्षा उनके ही दादा द्वारा स्थापित ब्रह्मो बॉयज स्कूल में हुई थी। इनकी माता एक शिक्षित महिला थीं जिसके कारण इनके घर में शिक्षा का वातावरण  बना रहा। 1908 में मेट्रिक पास करनेके बाद ,1912 में इन्होने प्रेसीडेंसी कॉलेज से PHYSICS HONOURS की डिग्री ली।इसके बाद उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से गणित विज्ञान की डिग्री हासिल की।वहीं इनकी मुलाकात विश्वविख्यात गणितज्ञ रामानुजन से हुई थी। इन्होने टी.आर. विल्सन जैसे विख्यात लोगों के साथ भी काम किया। 
भारत लौटने के पश्चात ये प्रेसिडेंसी कॉलेज में भौतिकी के प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए। कुछ दिनों के बाद ये वापस लंदन जाकर बायोमेट्रिका का अध्ययन किया और मानवशास्त्र तथा मौसम विज्ञानं जैसे  विषयों में सांख्यिकी के उपयोग की जानकारी हासिल की। 
फिर इन्होने भारत लौटकर 1931 में इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट(ISI) की स्थापना की। जिसका रजिस्ट्रेशन 28 अप्रैल 1932 को किया गया। अपने अथक प्रयास से इन्होने इसका प्रशिक्षण विभाग भी स्थापित कर दिया। 1950 तक आते -आते ISI एक विश्वप्रसिद्ध संसथान के नामों में गिना जाने लगा। 1959 में इस संस्थान को INSTITUTE OF NATIONAL IMPORTANCE घोसित कर दिया गया। और इसे एक डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया गया। 

Sunday, June 28, 2020

June 28, 2020

पी. वि. नरसिम्हा राव : आधुनिक युग का चाणक्य ; P.V.NARSIMHA RAO

पी. वि. नरसिम्हा राव : आधुनिक युग का चाणक्य 


पामुलापति वेंकट नरसिंह राव भारत के 9 वें प्रधानमंत्री थे।पी वी नरसिंहराव का जन्म 28 जून, 1921 को करीमनगर, आंध्र प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम पी. रंगा राव और माता  का नाम रुक्मिनिअम्मा था ।इनकी पत्नी का नाम सतयम्मा राव था। नरसिंह राव भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक कुशल कार्यकर्ता माने जाते हैं।  

राजनीतिक सफर 

1982 में ज्ञानी जैल सिंह के साथ ही राष्ट्रपति पद के लिए उनके नाम पर भी विचार किया गया था। लेकिन अंत में उनके नाम पर सहमति नहीं बन पायी थी। इनका कार्यकाल 20 जून 1999  से  16 मई 1996 तक रहा।   'लाइसेंस राज' की समाप्ति और भारत की  अर्थनीति में लचीलापन इनके प्रधानमंत्रित्व काल में शुरू हुआ। इनके काल में डॉ. मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे।1968-71में वे आंध्र प्रदेश सरकार में शिक्षा मंत्री रहे। 1971 से 1973 तक ये आन्ध्रा प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। 1984-85 केन्द्रीय रक्षा मंत्री का कार्यभार संभाला और 1985 में केन्द्र सरकार में मानव संसाधन और विकास मंत्री रहे। 
इन्हे भारतीय आर्थिक सुधारों का जनक” (Father of Indian Economic Reforms) भी कहा जाता है। इन्दिरा गाँधी के कार्यकाल के दौरान नरसिम्हा राव जी गृहमंत्री थे। 21 मई 19991 को राजीव गाँधी की हत्या के बाद कांग्रेस को 232 सीटों पर जीत मिली थी। अल्पमत की सरकार बनाने के बावजूद इन्होने अपना कार्यकाल पूरा किया था।इन्हे भारतीय राजनीती में आधुनिक चाणक्य की संज्ञा भी दी जाती है। विपक्षी दल के सुब्रमण्यम स्वामी को ‘श्रमिक मापदंड और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार’ आयोग का अध्यक्ष बनाकर उन्होंने इसका परिचय भी दे दिया था। यह भारत की  राजनीति में पहला अवसर था जब विपक्ष के किसी सदस्य को कैबिनेट स्तर का पद दिया गया था। 
 वह बेहद मुश्किल वक्त था। भारत एक राजनीतिक उथल-पुथल के  दौर से गुजर रहा था।  देश की सीमाओं पर की स्थितियां ठीक नहीं थी । थ्येनआनमन चौक( चीन ) पर घटी घटना ने पुरे विश्व को चकित कर रखा था , इराक ने कुवैत पर हमला बोल दिया था, मॉस्को में करीब 70 वर्ष पुरानी शासन व्यवस्था का अंत हो गया था । बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर देश में अशांति का दौर चल रहा था। काश्मीर की स्थिति भी ठीक नहीं थी। बाबरी मस्जिद गिराए जाने  देश में दंगे भी हुए। इसके साथ साथ इन्होने अपनी ही पार्टी में होने वाली गुटबाजी का दंश भी झेलना पड़ा था। 1993 में हुए मुंबई बम धमाकों ने भी इनकी मुश्किलें काफी बढ़ा दी थी। 
लेकिन स्थितियों से निपटते हुए उन्होंने भारत के विकास का रथ आगे बढ़ाना जारी रखा।क्योंकि इनके लिए देशहित ही सर्वोपरि था। अपनी आलोचनाओं पर ये सामान्यतः कोई प्रतिक्रिया नहीं देते थे। इन्हे सिर्फ अपने कार्य और कार्यपद्धति पर विश्वास था। उस समय हर्षद मेहता ने भी इन पर एक करोड़ के रिश्वत लेने का आरोप लगाया था। सांसदों की खरीद -फरोख्त का भी इल्जाम इन पर लगा ,मगर हर स्थितियों में इन्होने कोई प्रतिक्रिया न देकर बस भारत को विकास  के पथ पर अग्रसर करते रहे।  भारत के राष्ट्रपति APJ ABDUL KALAM ने भी इनकी प्रशंसा कर  कहा था कि"यह ऐसे देशभक्त है जो देश को राजनीति से सर्वोपरी मानते है "  अटल बिहारी वाजपेयी भी इनके और इनके कार्यों के बड़े प्रशंसक थे।  इनके काल में ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष नीति  (International Monetary Fund policy) शुरू की गयी , जिसके कारण बैंकों  में होने वाले भ्रष्टाचार में काफी कमी आई थी। 
1996 में कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। तब नरसिम्हा राव ने राजनीती से सन्यास के बाद कई  किताबें लिखीं जिसमे THE INSIDER NOVEL प्रमुख थी जिसमे उन्होंने अपने राजनीतिक सफर का वर्णन कर दुनिया को बहुत सारी ऐसी बातों से अवगत कराया। 

कई भाषाओं के थे ज्ञाता 

वे कई भाषाओँ के ज्ञाता थे। उनका साहित्यिक ज्ञान उन्हें और राजनेताओं से अलग करता था। उन्हें 17 भाषाओँ का ज्ञान था और संस्कृत के बड़े विद्वान थे। तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, उड़िया, बंगाली और गुजराती के अलावा वे अंग्रेजी, फ्रेंच , अरबी, स्पेनिश, जर्मन और पर्शियन बोलने  और लिखने में पारंगत थे। साहित्य के अलावा उन्हें कंप्यूटर प्रोग्रामिंग जैसे विषयों में भी रूचि थी। इसके आलावा उन्हें फिल्मों से भी लगाव था। 

  विदेश नीति थी प्रशंसनीय 

विदेश नीति के तहत में इन्होने पश्चिमी यूरोप, चीन और अमेरिका से सम्बन्ध सुधारने पर बल दिया। भारत-इजराइल सम्बन्ध को और प्रगाढ़ किया। इजराइल को भारत की राजधानी दिल्ली में अपना दूतावास खोलने की अनुमति प्रदान की । आसियान देशों से भारत के संबंधों की सटीक समीक्षा कर उन्हें अपने करीब लाया। 

कश्मीर को लेकर थी स्पष्ट नीति 

तब काश्मीर को लेकर बहुत सारी चर्चाएं हुआ करती थीं। लेकिन नरसिम्हा राव की सोच सबसे अलग थी। उन्होने ही संसद में ये बिल पास करवाया था की कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है।  उन्होंने उस समय संसद में अपने भाषण के दौरान कहा  था की  -" भारत और पाकिस्तान के  बीच संघर्ष की स्थिति है , और ये मतभेद की स्थिति सिर्फ इसलिए है की पूरा कश्मीर भारत हिस्सा है , और कश्मीर का कुछ हिस्सा जो उनके नियंत्रण में है ,वो हमें किसी भी हाल में वापस लेना है। " उनके इस बिल का उनके ही पार्टी के कुछ लोग विरोध कर रहे थे ,लेकिन उन्होंने इसे संसद में ध्वनिमत से पारित करवाया था। इस बिल के प्रभाव दूरगामी साबित हुए। तभी तो इन्हे भारत की राजनीती का चाणक्य कहा जाता है। 

पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव की मृत्यु  

23 December 2004 को नरसिम्हा राव का निधन श्वास लेने में काफी तकलीफ के कारण AIIMS में  हुआ। इनके निधन के पश्चात इनके अंतिम संस्कार की घटना भी काफी विवादास्पद रही। दिल्ली में हुए अंतिम संस्कार में इनके पार्थिव  शरीर को लेकर एक बहुत ही विदारक घटना घटी । जिस पर बहुत ही विवाद हुआ था। उनका परिवार उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में करना चाहता था, राव के बेटे प्रभाकर ने कहा था की, “दिल्ली ही उनकी कर्मभूमि है।” लेकिन कांग्रेस आलाकमान के निर्णय के अनुसार बाद में उनके शव को हैदराबाद भेज दिया गया। 



June 28, 2020

CORONA AND PRIVATE TEACHERS

CORONA AND PRIVATE TEACHERS 

कोरोना और प्राइवेट शिक्षक 


कल से हम भी कुछ और सोचेंगे !
क्या ?
हम भी सब्जी या कुछ और बेचेंगे ! और क्या ! ( मजाक करते हुए वो बोले )
क्या हुआ जी आपको ? कैसी बात कर रहे हैं ?
हाँ.... तो क्या करेंगे ? प्राइवेट काम करने वाले को कौन देखने वाला है ? खासकर प्राइवेट शिक्षक लोग को !
क्या हुआ ? इस महीने भी सैलरी नहीं मिला क्या ?
कहाँ से मिलेगा ? मार्च से बस किसी तरह चल रहा है जीवन। सब सोचता है हमलोग के पास बहुत पैसा है। और सब स्कूल वाला तो अरबपति है जैसे। पैसा ही अभिभावक लोग नहीं दे रहा है तो कहाँ से स्कूल वाला भी देगा सैलरी ?
लेकिन सब तो बोलता है की सैलरी देना स्कूल का काम है।
बोलने से क्या होता है ? स्कूल वाला के पास थोड़े न उतना पैसा होता है जो ! सब सोचता है की मेरा पैसा बच जायेगा इस साल। इसी चक्कर में पैसा जमा नहीं कर रहा है सब।
क्यों स्कूल के पास पैसा नहीं है क्या सैलरी देने को ?
तो क्या ? स्कूल का भी तो काफी खर्च है। सब स्कूल वाला थोड़े न धनवान है ?सब हर स्कूल का तुलना करता है बड़ा -बड़ा उद्योगपति वाला स्कूल से ,जिसके पास दस साल भी पैसा न आये तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यहां तो कितना ही  स्कूल बंद हो गया। सिर्फ फीस नहीं जमा करने के कारण।
फिर भी.....
फिर भी क्या... सब अपना प्रॉपर्टी बेच के थोड़े न देगा सैलरी ? इक्का दुक्का स्कूल होगा ,जिसका अपना बिल्डिंग है ,बहुत स्कूल किराया पर चल रहा है ,और किराया भी तो आप जानते ही हैं कितना है आजकल।
कुछ नहीं हुआ तो जुगाड़ ?
आप जुगाड़ की बात करते हैं ,यहाँ जान पर आफत है। हम पढ़ रहे थे सोशल मीडिया पर की दो-तीन टीचर सब्जी बेच रहा था ,बताइए जरा , वो भी बड़े शहरों के टीचर ,क्या हाल हो गया है देश का। अब क्या करेगा ,जब वेतन मिलेगा ही नहीं तो गुजारा के लिए तो यही सब न करेगा !
ओ... 
सब मायाजाल है। सब फंस जायेगा देखिएगा आप ! अभी न सब संवेदनहीन हो के बैठा है ,सब स्कूल वाला को बड़ा समझ रहा है न सब , सब फंस जायेगा।
कैसे फंस जायेगा ? सब का तो और अच्छा है न ! सब का पैसा बच रहा है तो। 
हाँ.... आप भी बोल लीजिये।। छिड़क लीजिये आप भी नमक ,घाव पर।
अरे नहीं मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है 
फिर सब पढ़ायेगा अपना उसी स्कूल में सब अपना अपना बच्चा लोग को वहीं पर जहाँ का फीस लाखों में है और क्या। अभी न सब ऐसे कर रहा है। बाद में  बहुत पछतायेगा ,आप देख लीजियेगा।
मतलब अब आप शिक्षक का पेशा छोड़ देंगे क्या ,आगे आप पढ़ें बंद करेंगे क्या ?
रहेंगे क्यों नहीं ?
तो फिर ? (मेरे इस " तो फिर " का जवाब शायद उनके पास नहीं था )
बताइये न ! लोगों के मन में क्या है ? अगर फीस नहीं भरेगा तो कैसे चलेगा ? हमलोग क्या करें ? भूखे मर जाये ?अगर एक भी शिक्षक इस वक़्त मर गया न तो सरकार को  सब समझ आ जायेगा।
कुछ नहीं समझ आएगा सरकार को ! आप उसके वोट बैंक नहीं है , सिर्फ पब्लिक है , आप हैं भी तो इतने छोटे वोट बैंक हैं ,जिससे उसको कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। 
इस बार आप सही बात बोले हैं। सबको हम लोग से ही रिलीफ चाहिए। ऐसा कैसे चलेगा ?
सब रिलीफ चाहता है ,इसमें किसी को क्यों बुरा लगेगा ?
तो ये कोई रिलीफ लेने का कोई तरीका है ? अरे , सरकार से रिलीफ मांगिये न ! यहाँ सरकार कुछ बोला ही नहीं है , सोशल मीडिया पर अफवाह उड़ाते फिर रहा है सब , सरकार ये बोला ,सरकार वो बोला। कोई तरीका है क्या ये ?सब अपने मन से ही जो हो रहा वो बोल रहा है।
हम तो सुने हैं की कोर्ट बोला  है ,फीस नहीं लेना है ?
ओ....  तब मतलब की आप भी उन्ही सब में हैं जो आम का इमली समझते रहते हैं ,क्या बोला कोर्ट ? सिर्फ यही की ट्युशन  फीस लीजियेगा लेकिन दवाब नहीं बनाइयेगा। और कोई चार्ज अभी नहीं कीजियेगा। यही बोला है न कोर्ट अभी तक। लेकिन सोशल मीडिया का प्रोफेसर लोग कुछ और ही बताते फिर रहा है। प्रशासन और सरकार ,दोनों चुप्पी साध लिया है ,क्या सरकार को नहीं पता है की कैसा -कैसा अफवाह उड़ रहा है जो ?
मैंने उनको बीच में रोकते हुए बोलै.... अरे नहीं मै तो हर महीने ट्युशन फीस दे रहा हूँ , बाद में देना पड़ेगा ही मै जानता हूँ , तो बाद में एक ही बार देने में लोड हो जायेगा। बच्चा भी तो पढ़ ही रहा है , टीचर लोग ऑनलाइन पढ़ा ही रहे हैं , मेहनत  तो उनका और बढ़ गया है , क्योंकि ऑनलाइन पढाने में बहुत माथा खराब होता है  , हम समझते हैं ,बहुत मेहनत कर रहे हैं अभी सब टीचर लोग।
आप बिलककुल ठीक कर रहे हैं , हाँ हम समझते हैं की कुछ लोग परेशान होगा , जो रोज कमाने -खाने वाला है उसे होगा थोड़ा बहुत परेशानी ,लेकिन और लोग का  क्या ? यहाँ सबको बस एक बहाना चाहिए। हम ये भी जान रहे  हैं की ऑनलाइन में पढ़ने का तरीका ठीक नहीं है ,लेकिन जहाँ कुछ नहीं हो सकता है , वहां कुछ तो हो रहा है , समझ ही नहीं रहा है सब।
ये भी बात ठीक है आपकी।।।
अच्छा !!! और सुनिए जरा आप !
क्या.... ?
कुछ लोग तो ऐसा कैंपेन चला रहे हैं की " NO SCHOOL - NO FEE "  बताइये हम लोग अपना मर्जी से स्कूल बंद करके घर में बैठे हैं क्या ? अगर ये कोरोना नहीं होता तो ? कम से कम इस विपदा में लोगों को एक दूसरे के काम आना चाहिए की नहीं ?
चाहिए तो.... लेकिन 
उस पर भी अपने आपको कुछ समाजसेवी कहने वाला लोग भी उसमे शामिल हो गया है।  इसमें क्या समाजसेवा है, बताइये आप ?क्या हमलोगों का घर-वार नहीं है क्या , हमलोग समाज से बाहर के हैं क्या ? एक तो ऐसे ही हमलोग परेशान हैं , ऊपर से ये लोग भी हमलोग का परेशानी बढ़ा रहा है।
हम्म... सब वोट लेना चाहता होगा और क्या ! मै क्या कर सकता हूँ आपके लिए , बताइये !
आपलोग जैसा लोग को ये सोशल मीडिया में प्रचार करना चाहिए ,अभिभावकों में जागृति लाने का कोशिश करना चाहिए। आपलोगों का बात बहुत लोग समझेगा भी और बुझेगा भी। 
मैंने हँसते हुए कहा... कितना लोग सुनेगा ? आप एक बात समझ लीजिये , ये सोशल मीडिया है , ये दिन को रात और रात को दिन बोलता है , कोई भी आपके समर्थन में नहीं आएगा।  और उल्टा मजाक बनाएगा आपका।  हमको भला - बुरा कहेगा सो अलग। हमको तो इस मामले में आप माफ़ ही कर  दीजिये , यहाँ तो लोग रिश्तों को भी उल्टा -पुल्टा बताके आपके लिए भ्रान्ति फ़ैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इसलिए मै ऐसा नहीं करूँगा। 
देखे.... आप भी पीछे हैट गए न ! यही हो रहा है सब का यही हाल है। चलिए... कोई बात नहीं , अब शाम शाम ज्यादा हो गया है , मुझे चलना चाहिए।
मै उन्हें जाता हुआ बस देख रहा था , कितनी सारी बात उन्होंने कही थी ,यही सोचने लगा , लेकिन उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से किसी को दोषी भी नहीं कहा और अपनी बेबसी भी बयां कर गए। उनसे ज्यादा बेबस अब मै अपने आप को पा रहा था की मै भी उनके लिए कुछ नहीं कर सकता।  जबकि मैंने बात ही बात में मदद करने की बात की थी , लेकिन बड़े ही साफगोई से उन्होंने बात को बदल दिया था। सचमुच में स्वाभिमानी निकले वो, माँगा कुछ नहीं ,बस अपनी बात से ही सब को बता दिया की गरीब वो नहीं कोई और है। ऐसे शिक्षकों का स्वाभिमान ही इनकी दौलत होती होती है।  चलिए ये वक्त भी निकल जायेगा , लेकिन ये समय भी बहुत कुछ सीखा और बता रहा है। 



Saturday, June 27, 2020

June 27, 2020

सैम मानेकशॉ; Sam Manekshaw

सैम मानेकशॉ


इनका पूरा नाम  सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ था। गोरखों की कमान संभालने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी थे। गोरखों ने ही उन्हें सैम बहादुर के नाम  से पुकारना शुरू किया। मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। 94 साल की उम्र में इनका निधन 27 जून 2008 को  हुआ।  27 जून को इनकी पुण्यतिथि है। 
1971 की भारत -पाकिस्तान युद्ध के नायक जनरल मानेकशॉ अपनी सूझ -बूझ ,निर्भीकता ,और जीवटता के लिए मशहूर थे। मानेकशॉ को 1971 की लड़ाई के बाद फील्ड मार्शल की उपाधि दी गयी थी। 
मानेकशॉ अपने सख्त अनुशासन के साथ -साथ , हाजिर जवाबी के लिए तथा हँसी - मजाक करने की प्रवृति के लिए भी मशहूर थे। शुरुआती पढाई अमृतसर में करने के बाद शेरवुड कॉलेज से अपनी पढाई पूरी की।  मानेकशॉ INDIAN MILITARY ACADEMY के पहले बैच के अधिकारी थे।1937 में एक समारोह के लिए लाहौर गए सैम की मुलाकात सिल्लो बोडे से हुई। दो साल के बाद 22 अप्रैल 1939 को उन्होंने  सिल्लो बोडे से शादी कर ली। उनकी मृत्यु वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल में 27 जून 2008 को हुई। 

अपनी बहादुरी के लिए थे प्रसिद्द 

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बर्मा के पोस्ट पर वे फ्रंटियर फाॅर्स रेजिमेंट के कप्तान के पद पर तैनात थे। यहीं जापानी सेना से लड़ते हुए उन्हें सात गोलियां लगी थीं। और वे गंभीर रूप से घायल थे। डॉक्टर्स ने भीउनकी गंभीर स्थिति को देखते हुए  इनका इलाज़ करने से मना कर दिया था। तब इनके एक गोरखा सैनिक ने डॉक्टर पर बन्दूक तान कर मानेकशॉ का इलाज करवाया। तब कुछ दिनों के बाद आखिरकार मानेकशॉ स्वस्थ हुए। इलाज के दौरान डॉक्टर के पूछने पर उन्होंने हँसते हुए कहा ये सब कुछ नहीं है ,बस आप इलाज कीजिये। जबकि उन्हें सात गोलियां लगी थीं ,फिर भी उनमे कसीस तरह का भय नहीं था। उनका एक ही मंत्र था -" जब तक जान है ,तब तक लड़ो "  

हाजिर जवाब में थे माहिर  

1971 के भारत -पाकिस्तान युद्ध के दौरान जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उनसे सेना की तैयारियों के बारे पूछा की -क्या सेना की सारी तयारी हो चुकी है ? तो मानेकशॉ ने बड़े ही चुटीले अंदाज में उन्हें तुरंत जवाब दिया -" I am always ready sweety "
प्रधानमंत्री को भी ऐसे चुटीले अंदाज में जवाब देना ,उन्हें औरों से बिलकुल अलग करती थी। जो यह दर्शाता था की युद्ध जैसे विपरीत हालात में भी वो कितने सामान्य दिख रहे थे ,जो उनके हौसलों की एक अलग ही कहानी बयां कर रही थी। 
लेकिन 1971 के युद्ध के बाद जब यह अफवाह फैली की मानेकशॉ तख्तापलट करने वाले हैं तो ,इंदिरा गाँधी के माथे पर बल पड़  गए। तब उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इंदिरा गांधी से मुलाकात की और कहा -"मैडम... ?आपकी नाक बहुत लम्बी है ,और मेरी भी नाक बहुत लम्बी है ,लेकिन मैं कभी भी किसी दूसरे के मामले में अपनी नाक नहीं घुसाता "
स्पष्ट था की मानेकशॉ ये कहना चाहते थे की उनकी और प्रधानमंत्री दोनों  की अपनी एक प्रतिष्ठा थी ,जिसे वो कायम रखना चाहते थे। और भारत सरकार  का तख्तापलट करने का उनका या उनकी सेना का कोई इरादा नहीं है ,तख्तापलट की बात एक कोरी अफवाह के सिवा  कुछ नहीं है। 

कई युद्धों में ले चुके थे हिस्सा 

मानेकशॉ 1934 से 2008 तक वीर भारतीय सेना के अंग से जुड़े रहे। उन्होंने भारत द्वारा लड़े  गए लगभग सभी युद्धों में अपनी वीरता का परचम लहराया। 
द्वितीय विश्व युद्ध जो 1939 -1945 के बीच लड़ी गयी ,वो बर्मा के मोर्चे पर तैनात थे 
1947 के भारत -पाकिस्तान युद्ध में भी इनकी विशेष भूमिका रही 
1962 में भारत -चीन युद्ध में भी इन्होने हिस्सा लिया 
1971 में भारत -पाकिस्तान के युद्ध में इनकी प्रसिद्धि और बढ़ गयी थी ,जहाँ इनके दिशा निर्देशन में पाकिस्तान की फ़ौज को घुटने टेकने पर विवश होना पड़ा। 
1962 से सारी लड़ाईयां इनके ही नेतृत्व में लड़ी गयी और इन्होने हर युद्ध में अपने देश का सर हमेशा ऊँचा रखा। 

मानेकशॉ को मिलने वाले वीरता सम्मान 

  • फील्ड मार्शल की उपाधि 1973 
  • पद्मभूषण  1968 
  • पद्मविभूषण 1972 
  • सैन्य क्रॉस 

मानेकशॉ को था अपने पर बहुत विश्वास 

1971 के युद्ध के बाद उनसे जब ये पूछा गया की -"अगर आप बँटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए होते तो क्या होता ?"
तो उन्होंने मजाक में हँसते हुए जवाब दिया -"होता क्या... ?तब सारी लड़ाइयों में मै पाकिस्तान की तरफ से लड़ता और उसे हरने नहीं देता।"लेकिन मेरा सौभाग्य है मै भारत में हूँ। 1947 में भी इन्होने अपनी सूझ-बूझ से काश्मीर पर भारत सेना का नियंत्रण पाने में ,तथा स्थितियों को सँभालने में मदद की थी।  7 जून 1969 को सैम मानेकशॉ ने भारत के 8वें चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ का पद ग्रहण किया था। 15 जनवरी 1973 को वे फील्ड मार्शल के पद से सेवानिवृत्त हुए।

चूड़ियाँ पहन लो 

1962 में जब चीन के साथ लड़ते हुए मिजोरम की एक बटालियन ने युद्ध से दुरी बनाये रखने का मन बनाया तो मानेकशॉ ने उस बटालियन को चूड़ियां भिजवा दी थी ,और साथ इ सन्देश भिजवाया की - अगर लड़ाई से पीछे हटना है तो चूड़ियां पहन कर घर को चल दो। उनके इस बात का उस बटालियन पर काफी असर पड़ा और उन्होंने युद्ध में बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लिया और अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया था ,हालांकि उस युद्ध में भारत के पराजय का दुःख मानेकशॉ को ताउम्र रहा।